पृष्ठ:चंदायन.djvu/२०९

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(रीलैण्ड्स १६२) सिफ्ते खुए हर जिन्से आरास्त गोयद (प्रत्येक प्रकारकी सुगन्धिका वर्णन) लौटि देखि जो कुंकू लोरा । चन्दन घिसि भरि धरै कचोरा ॥१ वैनॉ परिमल इत औ छरा । ठौर ठौर सर तेलिया जरा ॥२ मेध सुगन्ध आह असरारू । चोया बास होय मँहकारू ॥३ सैर कपूर सुरंग सुपारी । पान अदा कर धरी सॅवारी ॥४ नरियर दास चिरौजी आहा । खॉड सॅडोर कहूँ तिह काहा ॥५ लोरहिं लीन्ह खॉम परछाई, तुर उचाइ मुख जोइ ।६ धन निरास चॉदा कै, वास मॉहिं निसि सोइ ॥७ टिप्पणी-(२) बेनां = स. वीरण, सस । परिमल-अनेक मुगन्धियोको मिलाकर बनायी हुई सुगन्धि । इत–सम्भवत इन। (३) मेध-मेद, एक प्रकारकी सुगन्धि जो किसी पशु नाभिसे बनायी जाती थी। (आइन-अक्बरी, आइन ३०, पृ० ८५)। चोचा-एक सुगन्धि जिसके तैयार करनेकी विधिका आईन अझपरीमे उल्लेम है । .(४) कपूर-~-'वेवर पाठ भी सम्भव है। उस स्थितिमे उसका तात्पर्य 'वेवडा' होगा। २०७ (रीरेण्ड्स १६३) सिफ्ते तरन्ते जरी व मुकल्लल वे जयाहिराते चिराग (शय्या वर्णन) पालँग सेज जो आनि बिछाई | धरत पाउ भुइँ लागै जाई ॥१ पान बनै अरु फूलहिं भारी । सोने झारी हॉस गुंदारी ॥२ सुरंग चीर एक आन बिछावा | धरती पैस इवन अस आवा ॥३ तिहि चढ़ि सूत वउँ विकरारा । सोंपा इट छिटक गये धारा ॥४ यहि मॅति कर फूल पहि वासी । करेंडी चारि फर भर डासी ॥५