पृष्ठ:चंदायन.djvu/२१०

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२०० लोर जान आये सभरि, पुहुप वास रस आइ १६ निसा हाथ पसार, काँपि उठे डर पाइ ॥७ टिप्पणी--(१) आनि-लार । धरत-रसते ही । पाउ-पैर । भुइ-भृमि । (३) मुरंग-लाल | झवन-मर्छ । भम-ऐश । (४) बोंपा-शका जूडा । वारा-चाल, पेश । (५) कर डी-फुल्की टोकरी । फर-पूल । २०८ (रेण्ड्स १६४) पैदार कर्दने लोक चाँदा रा अज ख्याय (रोरया चाँदाको जगाना) गुंदवा चॉद धरा अधकाई । दीन यतीसैं बैठो आई ।। मुसा कँवल जनु विहसत आहा । अधर सुरंग बिरंगू काहा ॥२ सोनत फिरा हियें कर चीरू । अस्थन देखि मुरझि गा वीरू ॥३ चितहिं गहै अब आप जनाऊँ । पाड धरउँ के वकत सुनाऊँ ॥४ फिरि के लोर झौं अस आया । मन संका नहि सोचत जगावा॥५ कापर आन घरपूर गहि, पीरहि यकति न आउ ।६ जीउ दान मन संका, किहिं निधि सोवत जगाउ ॥७ (रीलंण्म १६५ : पंजाय [ला०]) धीदार शुदने चौदा व गिरफ्तन मोये सरे लोरस य परियाद यर आवर्दन (घाँदका डागार रोरपके केश परफार चिल्लना) उघरत बेर गही कर पारी | नैन सोवहि मन जागि कुनारी ॥१ फुन सतरी जो नियरें आवा । कर गहि केम चाँद गुहरा ॥२ चोर चोर कहि कोउ न जागे । मानुम सूत सो गुहार न लागें ॥३