पृष्ठ:चंदायन.djvu/२११

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२०१ ऊँच चोल तो चेरो जागहिं । चोर देखि भय जीयें लागहि ॥४ छाड़ न केस धरसि दइ फेरा । करहिं गुहार चोर महिं हेरा ॥५ मन रहँसै धनि अस कहै, जिये आस तुलान ।६ दयी ठॉउ जो माँगेउँ, सो महँ सरवस आने ॥७ पाठान्तर-पजार प्रति- शीर्पक-~अश अपाठ्य है। १-~-सूत । २-गुहरवा । ३-पूरी पक्ति अपाठ्य है । ४--चोर देखि बहु जियसे लासहिं । ५-~पक्ति ६-७ वाला अश फट गया है। टिप्पणी-(९) बेर-समय । गही-पडा । यारी-याग, युवती । (२) नियरें-निकट 1 गुहरापा-पुकार लगाई। (५) हेरा--देखा। (६) तुलान-पूरी हुई। (७) गुहार--पुकार। (८) सरवस--सर्वस्य; सब कुछ। (रीलैण्ड्स १९३) जयाय दादने लोरच मर चॉदा रा बानरमी (लोरकका चाँदसे धीरे कहना) मन अचेत धनि भीभर खोली । अपने जरम न कीन्हेउँ चोरी ॥१ आयउँ तोरे नेह कुवारी । कही चोर औ दीन्हीं गारी ॥२ चोर होतेउँ तोर अभरन लेते हैं। पूर गहन लै ऊचहिं देतेॐ ॥३ धरी केस । महिं गुहरावसि । सोवत लोय केहि अरथ जगावसि॥४ अभरन काज न आवइ मोरे । रूप भुलानेउँ चॉदा तोरें ॥५ तोहि लागि जो मरेउँ, नेह न छाडेउँ काउ।६ पिरत तुम्हार लाग मोर हिरदै, जै जिउ दिनु जाइ तो जाउ ॥७ टिप्पणी गुहरायसि-पुकारती हो।