पृष्ठ:चंदायन.djvu/२१२

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२०२ २११ (रीरेण्ड्म १६७) गुफ्तने चाँदा लोरय रा दुद (चाँदका उत्तर) चोर रैन जो चोरी आवड । अभरन लेत तिहि क्रन छुडावइ॥१ चोरहु नेह क्हड दुनि काहा | अइस उतर कहु जाइत आहा ॥२ मै तिहको का सँदेस पठावा । कौन सकति तू मो पड़ें आवा॥३ जा तिहिं पंसि उठी जो आई । रहे न पाउ सो मरे अढाई ॥४ जिउ दइ चाहु आई सो वेरा । चीन्ह न कोउ चोर महिं हेरा ॥५ मींचु तार तूं आनसि, कैसे मेट न जाइ ६ पाउ धरहु तिहँ निस्तर, जायहु जीउ गॅवाइ ॥७ टिप्पणी-(३) मो-मुझ । २१२ (रीरेण्डस १६८) सवाल पर्दने लोक व नमूदने तमसील (लोरक्का कथन) जौलहि जीउ घट मह होई । तौलहि सरग न आवइ कोई ॥१ प्रथम मानुस जीउ गँवावइ । तो पाछै चट सरगहिं आवइ ॥२ भर के चाँद सरग हो आवा । जो जिउ होड डराइ डरावा ॥३ ही तो मरेउँ जिवहु तो देसी । तोहि देस धनमुएऊँ विसेसी॥४ मुएँ जो मारे सो कस आहा | चॉद मुऍ कर माग्य काहा ॥५ देस रूप जिउ दीन्हों, तो आयउँ तिहिं पास ६ रहे नैन जिहिं देसउँ, रहे जीह लैं साँस ॥७ टि-पणी-(१) जोरहि-जब तक । सौलहि-तब तक । (२) पार्ट-पीछे, यादम। (१)भारत-मारना।