पृष्ठ:चंदायन.djvu/२१३

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२०३ २१३ (रोरैण्ड्स १६४५) गुजाम्तने चाँदा मूये सरे लोरव व गिरफ्तने कमरब दे ऊ (चाँदाका केश छोड़कर आँचल पड़ना ) लोर मन उठा सरोहू । चॉदा चितहिं घुझानेउँ कोह ॥१ केस छाडि धनि ऑचर गहा { चॉद पैठि नर ठादा रहा ॥२ चोर नॉउ आपुन कछु मोही । बोल सबद मकु चीन्ही तोही ॥३ कउन जात तुर घर है कहाँ । कउन लोक तुम्ह आछ जहाँ ॥४ मतापिता तोरैचिन्त न करिहै। रैन फिरत तिहि बाचन धरिहै ॥५ कहत वचन मह अस भा, काकहिं करियहुँ तोहि ६ महर रोंस लै करहिं, सर हत्या फुनि मोहि ॥७ टिप्पणी-(२) धनि--स्त्री 1 आँघर-ऑचल | गहा--ग्रहण किया, पकडा ! सादर-सडा। (३) भाउ-नाम । (४) उन-कौन । तुर-तेरा । आछ-रहते हो। (७) रोख-रोप, क्रोध । २१४ (रीरेण्ड्स १६९) जबाब दादने लोरवा चॉदा रा (चाँदको लोरकका उनर) आज कहु चाँद न चीन्हसि मोही। गहनै लेत उपारेउँ तोही ॥१ तुम्हरे साख जो कीन्ह न काऊ । मारेउ पाँठ सदेरेउँ राऊ ॥२ आनों पीर देख तोर अहैं । सगर वीर मोर मुख हे ॥३ हौं सो आह धनि कुंकू लोरा ! सॉड परत मैं अंग न मोरा ॥४ महर काजि मै जीउ निपारेउँ । गार पसेऊ तहाँ लोहू हारेउँ ३५