पृष्ठ:चंदायन.djvu/२१४

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२०४ पुरुस न आपु सराहे, पूछति कहई बात ।६ चोर बोल सो मारै, जो मन वाउर रात ॥७ टिप्पणी-(१) चिन्हसि-पहचानती हो । गहनैप्रहण । उबार-उद्धार किया। (२) साख-साथ । सदरे- भगाया। (३) सगरें-सभी। (४) गार-गिरा। (७) बाउर-पागल । रात-अनुरत्त होकर । २१५ (रीरैण्ड्स 100) रावाल पर्दने चौदा दर येहानते लोरक (चाँदर लरकका उपहास करना) आपुहि वीर सराहसि काहा | जात गुवार आह चरवाहा ॥१ हमरें चेर सहस एक आहहिं । काज कहा नहीं तिह एक न छेवहिं।।२ अति कमान जो पूँछ वढावा । असवारहि क] फेरि न आया ॥३ जाकहँ लोर कीन्हि मिताई । सिंह के मंदिर कस पैठेउ धाई ॥४ ऐसें नर जो सेउ करावइ । साई दोह अस छोह न आवइ ।।५ सुन जो पावइ महर अस, गोवरा परिहँइ बेरि ६ एक धरति सो धरि पहें, तूं डोलहु किह केरि ॥७ टिप्पणी-(१) गुवारवाल | भाह-हो। (७) परिहँइ-पढ़ेगी । घेरि-येटी। २१६ (लिंग्स १७०८) जगार दादने लोरप मर चाँदा रा (रोरमका उत्तर) साई दोह अस बोले नारी । रात जाइ अहनाते मारी ॥१ के पावन निसगार सॅचार । के दिनाय चूनाँ महँ मार ॥२