पृष्ठ:चंदायन.djvu/२१६

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'करिया' शब्द है। पवारवाहक्षमा काम नावको नदीके बीच सम्हाले रहना है । वो रिनारे तो रस्सी खोचनेवाला माझी ही राता है। अतः प्रलुत प्रसगमे उचित पाट गुनधार' होगा 'क्डहार' नहीं। २१८ (रेण्ड्स १७६) जवार दादन लोरर चाँदा रा (लोरम्बा उत्तर) जिहँ दिन चाँद गयउँ जेउनारा । देस विमोहे रूप तुम्हारा ॥१ तुम्हरे जोत भयउ उजियारा । परेउँ पतंग होइ मैं विसभॉरा ॥२ सो रंग रहा न चित हुत जाई । चितहिं माँझ रँग गढ़िया छाई ॥३ रंग मेंउँ रंग भोजन करउँ । रंग बिन जियउँ न रंग विन मरउँ ।।४ तिहिं रंग नैन नीर नइ वहा । विनु सत चूड़ होइ अवगाहा ॥५ रंग जो देहि मन भारी, विन रंग उठे न पाउ ।६ जीउ चाह रंग डोलहि, सुन चाँदा सतभाउ ॥७ २१९ (रीटेण्ड्म १७२) गुफ्तने चौदा हिकायते इस (चदा प्रेमकी बात करना) रंग के बात कहउँ सुनु लोरा । कैमें रात मोह मन तोरा ॥१ जात अहीर रंग आह न तोही । रंग विनु निरंग न राता होई ॥२ कहु दुख जो तें सम नित सहा । दिन दुरा यह रंग कैसे रहा ॥४ जो न हिये नर खाँडड साऊ । रंग रत एक होइ न काहू ॥४ अगिन झार पिनु रंग न होई । जिहि रंग होइ आवत मर मोई ॥५ अन न रूच रंग बहा, जाइ नींद निसि जाग ६ मोट धूल तू लोरक, कहु में रंग लाग ॥७