पृष्ठ:चंदायन.djvu/२२४

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२१४ हँसि लोर अस बोला, राधा रात गुझायउँ ।६ कौतुक रैन विहानि, तिह देखत नैन न लायउँ ॥७ २३५ (रीलैण्ट्स १८५) सवर याफ्तने मादरो पिदरे चॉदा अज आमदने क्सी वीगाना र कल (परपुरपके महलमें आनेकी बात चाँदके माता-पिताको ज्ञात होना) महरी महर बाते अस जाहा । मंदिर पुरुख एक आवहि आहा ॥१ चेरी चेर नाउ औ वारी । तिह सुन पुर घर बात सँचारी ॥२ गोवरॉ पात घना फुनि भयी । और कुछ मैंना पँह फुनि गयी । फूल घाम जन रही सुखाई । फुनि मैना गई कुँचलाई ॥४ घर घर महरी सीस कहहीं । सुन के अगरगचितँहिनधरहीं ॥५ मालिन कहा लोर कहि, रोक्त मैना जाइ ।६ आग लाग सुन रिस्तर, जरते जाइ बुझाई ॥७ २३६ (रीलैण्ड्स :८६) पुरसीदन सोलिन मर मैंनौ रा अउ उउ हालेज (सोलिनका मैनामे पायक तबीयत खराब होनेका कारण पूछना) सोलिन मैंनहि देसत अहा ! कहसि तिह कुरी के कछु कहा ॥१ बरन रात सॉवर तोर काहें । परन सँवर रात होइ चाहें ॥२ मँह कहु मुनी कछु तै पावा । लोर चीर भयउ किंह राता ॥३ वारी उतर देस न मोही । के कुछ आइ कहा है तोही ॥४ जीभ काढ़ि ताकर हों जारौं । घरहिं छुड़ाइ तिह देस निसारौं ॥५ उरच फाट हाँ मरिहउँ, कहसि विह बेदन काह १६ सुहर रूप तोर, भोर पदरी डाँकत आह ॥७