पृष्ठ:चंदायन.djvu/२२५

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२३७ (रोरैण्ड्रा १४७) मुनपिर शुदने खोलिन केह मन हीच नमीदानम (योरिनका अपनी अनभिज्ञता प्रकट करना) ओही पोह मोर माटी होलि*] । मॅह आगै जो कहि कुछ कोऊ ॥१ हो दोसी जो कछु न जाना । अनजाने कम काह घसानो ॥२ दई ठॉउ भल पार न पाऊँ । जान सुनि जिह जो तोहि लुकाऊँ॥३ सो कम आह रॉड मॅडहाई । सेज छॉडि जो आने जाई ॥४ घर के धिय कीन्हि पराई । अपने कीतस शान बुराई ॥५ ताहि लाग जिउ बॉधउँ, जीउ मोर तूं आहि ।६ कहसि तिह कौन भडहाई, देम निसारउँ ताहि ॥७ २३८ (रीलेग्म १८७३) गाज गुफ्तने मैना मर सोलिन रा (सोरिनसे मैनाका कथन) माइ मोर तुम सास न होहू । बोलेउँ चितहि उठा जो कोह ॥१ जाकर नित उठि पाउ बुहारी । ताकर ओछ कहे का पारी १२ कइ वियाह वारी ही आनी । जौलहि न भोगहि गहउँ नपानी||३ भेवर वास कुँवरी के राता | कॅपल फली हन पूछि न पाता ॥४ अमरित कुण्ड जो आछत भरा। जो सरवर लै अनते धरा ।।५ जाइ देशु माई सोलिन, लोरफ है सत ढेल ।६ सारस बर र मरी, पिउ रिन रैन अफेल ||७ टिप्पणी-(७) सारसमी जोडीका प्रेम प्रसिद्ध है। एक्की मृत्यु हो जाने पर दुमरा भी उठो वियोगमें चिल्ला चिल्लाकर प्राण दे देता है।