पृष्ठ:चंदायन.djvu/२२७

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२१७ -लान होएड स साँवर । अनारी। ५-मोरीं। ६-चोरी। ८-पारा । ९-~भवद रारा उजियार ।। २४१ (रीलैण्ड्स १८९) ज्वार दादन मैना मर सोलिन ग (खोलिनको मैनाका उत्तर) काह कहउँ ही सोलिन मार्ड 1 हो भुड आहों दही परायी ॥१ धिय के जात आह यह केरी । हो फुनि भइ तिहँ के चेरी ॥२ जान बूझ के महँ कस गोचहु । होड तुम्हार तसकर रोवहु ॥३ जाकर कोइ जरै सो जाने । चिनु जरते तस काह वसाने ॥४ तुम्ह जानहु मोसेउँ कर चोरी । लोरक वीर रॅवइ किंह गोरी ॥५ हो जो कहत तुम्ह दिन दिन, लोर रैन कित जाइ ।६ घर न दास रस पूरे, चर चर आउ पराइ ॥७ २४२ (रीरेण्ड्म १९०) दर सातिर गुजरानीदने लोरक कि मैंना मुनीदने अस्त (लोरकका समझ जाना कि मैनाको वात ज्ञात हो गयी) फड गियान मन लोरक गुनॉ । असि मैनाँ कुछ है सुनाँ॥१ तोर विरोध महँ सेतै कीन्हा । नार अन्तर पर अन्तर दीन्हा ।।२ परके लोर पास धनि बैठा । रफत झरत मुस रोनत दीठा ॥३ ऑसु पॉछि पानी धावा । मोहि देसि तुम्ह काहे रोगा ॥४ नित रहै न चारी मनौँ । दरस न करे यात महिं बैना ॥५ के मन सोक सकायहु, के कुछ भयउ नियाउ १६ रस मॅह निरस सँचारे, चितहि चढ़ा कम भाउ ॥७