पृष्ठ:चंदायन.djvu/२२८

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२१८ टिप्पणी-(१) अपसि-अवस्य । (२) सतनाहक । २४३ (रोटेण्ड्म १९१) गुफ्तन दादन मैंना लोर ग यागुत्स (मैनाश लोरमको शुद्ध होकर उत्तर देना) तिहँ के भाव चढाबहु लोरा । जिंह सेतै मन लागेउ तोरा ॥१ तजि मारग जो कुमारग जाई । सो कस मुस दरसापड आई ॥२ सुद्ध सान्त जनु क न जाने । मॉगत पान तो पानी आने ॥३ जे छंद नौॉड गापँहु आयो । ते लोक तुम्ह कहाँ पायी ॥४ सेज छाड । सरगहिं जायी | चॉदहि रॅवड कर आन वत्तायो']॥५ वहान गोल मह उकस, जानसु कछ न जान ।६ नार कीन्ह ते बाउर, तिह पंथ भूल सयान ॥७ २४४ (रोरेण्ड्स १९२) ज्वाब , तरसानीदने लरव मर नना रा (उत्तर, लेरफका मैन को हराना) अस धनि पुरुस जो वेगमरामा । आन सँभोये अम उत्तर आना ॥१ ठापुर के घिय परजहि लापा । अइम पहले मुंड युटावा र सरग चाँद धरि लोरफ आहा । इन्ह मात दुनि रहिये काहा ॥३ सरग गये धनि बहुरि न आनइ । जियते मरगहि जान न पावड ॥४ औ जो तुम हम सरण पठाउन । सरग गयें को बहुरि न आउय ॥५ जीम सँकोरहु मनॉ, होड पदुल तजियाउ १६ जिये महँ सरग चलापह, तुम सों यहाँ मिराउ ।।७