पृष्ठ:चंदायन.djvu/२३०

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२२० २४७ (रेस १९५) गुप्तने लरफ उमाल्यित च सूत्रीय मैंना (रोक का मैनाकी प्रशंसा करना) मैंना तिह जस तिरी न आहे । तोहि छाडि चित एक न चाह॥१ मैं तोरै रस चिरस विसारा । देख न भावई आपु सहारा ॥२ मैं तो नारि चाँद जस पाई । चाँद जोत सव गयी हेराई ॥३ सो सुन अपजस कै लाई । लागु न मैंना कहै बुराई ॥४ नैन देसि बात उभारी । डाँकी सुनि के अखरत पारी ॥५ तू चाह को आगर मैंना, मोर चिंत न समाइ ।६ अमरित कुण्ड जिंह यरसै, सो हरनित नहि खाइ ॥७ २४८ (रीरेण्ड्स १९६५) गुफ्तन मैना मर लोरफ रा (नामा लोरकसे कथन) लोर चाँद मोर उकरहु काहा । जो करिये सो आछत आहा ॥१ सोरह करॉ चोरी दिसरावड | चॉदा मोसों सरभरि पावइ ॥२ लोरक तोरै नारंग वारी । भूलि न पैसु पराई पारी ॥३ घास केतकी भेंबर चोरापड । सो हर का, जीउ गॅवावइ ॥४ हों जिय तार तोर उराऊँ । नींद न जानउँ भुगति न खाऊँ ॥५ तोरै भल मन संका, पर येलें फित जाइ ६ घर न दास रस पूरे, चर चर आउ पराइ ॥७