पृष्ठ:चंदायन.djvu/२३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२२१
 

२२१ २४९ (राहण्ड्म १९६५) ल्हू । दर खुशदिली लोक व मैना गौरद (पही लोरक और मैनाकी मसदनाया वर्णन ) चठि सान्त हॅसि लोरक कहा । कासो कोप मैना चित अहा ॥१ घर उभर के मंदिर सॅवारा । कीत रसोई अगिन परजारा ॥२ सेज बिछाइ लोर अन्यावा । औ भल भोजन काढि जिवावा ॥३ रंग बिरंग सो लीन्हि सुपारी । पान बीरै मुख दीन्हि सॅवारी ॥४ हॅसत लोर बाहर नीसरा । चाँद बात मैना वीसरा ॥५ सोइ निरस सोइ तरुनर, सोई लोर सो धीर ।६ सोह मिरघ सो थरहर, सोइ अहेरिया सो अहेर ॥७ २५० (सैलेण्ट्स १९७) कैपियते चाँदा तरावत दर बुतसान गुप्तन महत (मन्दिरमें बाँदसे ग्रामणका कहना) असाद असादी गयी तिह अही । दून गिन देउ जातरा कही ॥१ सोमबार महत गिन कहा । सो दिन आगै आयत अहा ॥२ होम जाप अगियार करावहु । परस देउ कर जोरि मनाम ॥३ जो धरि मॉथ देउ पॉ आवइ । सो जस चाँद सुरुज वर पावइ ॥४ सोमनाथ कह पूजा कीजड । असत फूल मार ले दीजह ॥५ चलै पिरिथमी नौसण्ड, देउ जात सुन आइ ।६ चॉद सुरुब मन रहँसे, देउ मनायस [जाइ'] ७ टिप्पणी-(१) जातरा-याना, देवता की पूजा (मनीती) के निमित्त साना । (३) होम-हवन । जाप-अप । अगिधार-धूप अथवा घो दापरवा - अग्नि में डाल देवता के सम्मुए आरवीकी भौति गिराना।