पृष्ठ:चंदायन.djvu/२३३

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२२४ २५३ (रीरेण्ड्स २००) रफ्तन चाँदा दरुने बुतत्वाना व आशिफ शुदने देवान दीदने चांदा (चाँदमा मन्दिर में प्रवेश : उसपर देवताओका आसक्त होना) हाथ सिंधोरा सेंदुर भरा । भीतर मॅदिर चॉद पो धरा ॥१ ससी साथ एक गोहन भयी । नावत सीस देउ पह गयी ॥२ देउ दिस्टि चॉदा मुख लागे । बुध विसरी औ सिध फुनि भागे ॥३ देखत देउ गयउ मुरझाई । चॉद तराइन सों चल आई ॥४ के विधिमोहि मोह जो दीन्हा । के हो सरग मॅदिर महं कीन्हा ॥५ मँदिर तराइन भरि गा, चाँद कियउ अजोर ।६ होम जाप सत्र विसरा, फवन देवस यह मोर ॥७ टिप्पणी-(१) सिंधोरा-सिन्दूर रखनेश पान । विवाहित हिन्दू स्त्रियाँ देवदर्शन, पूजा आदि अवसरो पर इसे अपने साथ रखती रही है। (२) सात-'सा' पाठ भी सम्भव है। २५४ (रीरेण्ड्स २०१) परस्तीदने चाँदा बुत रा व ग्वासने मुहम्मत या लोरम (चाँदका देवताको पूजा करना और लोरका प्रेम नागना) सेंदुर छिरक अगर चढ़ाया । नमसकार के देउ मनारा ॥१ सोवन असत फूल के मारा 1 पायँइ लगिविनवड़ अस नारा ॥२ देव पूजि माँगेउँ तुम्ह पासा । संउ फरी मन पूँजइ आसा ॥३ चाँद मुरुज वर जिहँ पाऊँ । देउ करस महँ घिरत भराऊँ ॥४ पिनवइ चॉदा पाँयन परी । देउसुरुज दिनु जीउ न घरी ॥५ एक चहत के महँ देहू, विरही पॅध पुजाइ ।६ देउ पूजि के चाँदा, गिनती ठादि कराइ ॥७