पृष्ठ:चंदायन.djvu/२३७

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२२८ इस प्रतिमें पक्ति ३, ४, या क्रम ४,३ है। १-चौद न अछर । २-सरभर । ३--यह पुनि म्हे गाँवों मसवासी। ४-और बिसेसैं राउर धावद। ५२। ६-है। U-देस लोग जग जानस, पितहि दिवासि कार। २६० (रीरेण्डस् २०७ : बम्बई २१) गुफ्तने चाँदा मर मैंना रा व दुरनाम दादन (चाँदका मैनाको सुना कर गाली देना) बात बहइहौं काहे नाहीं । पंडित मुनिवर सेउ कराहीं ॥१ यार चूढ़ सब पायन' लागँहिं । पाप केत परिसा कर भागँहि ॥२ तूं अभरैले चोलसि भँडहाई । औ मँह से तै करसि पड़ाई ॥३ सात छिनार खाल तू कढ़ी । काह करौं जो ली है' मढ़ी ॥४ देवर जेठ भाइ सब लेसी । ईत मीत कुरैया परदेसी ॥५ तेलि भुंज औ कोरी, घोची नाउ चेरै ।६ राँड याँध सब गाँजसि, कार्दखोर बहेर ॥६ पाटान्तर-चम्बई प्रति- शीर्षक-इल्म व जमाल खुद नमृदने चाँदा व पहा गुप्तन मर मैंना का (चाँदका अपने गुण और सौन्दर्यको प्रदास वरना और मैंनाको गाली देना)। २-नद पायहि । २-योभन पाप देखि कर भागैहि । ३-अभरी। ४-रेती। ५-देवर जेट और सग लेसी । ६-थ १७-कोहरी । ८- घोसी नाऊ पारी र । ९-रॉड पास रुष गाँस का। टिप्पणी-(४) कदी, मदी-'परही, मही' पाट भी सम्भव है पर युछ सगत अ नहीं बैठता।