पृष्ठ:चंदायन.djvu/२४०

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डाकी नूदि हुती अँधियारी | अब यह बात करउँ उजियारी ॥३ काह करै तू मारसि मोरा । दई दीन्हि मैं पायउँ लोरा ॥४ अब गयइ होइ आछहु मैंनौं । जीभ सॅकोर राखु मुख चैनॉ ॥५ जाह जोग हुत राउँ, तासो भयउ मेराउ ।६ मोतिह हार मँह घुघची, मैना सोइ न पाउ ॥७ 7 (रीरेण्ड्स २१० ; बम्बई जवाव दादने मैंना मर चाँदी रा (मैनाका चाँदको उत्तर पुरुख संग सों सरभर' पावइ । मार विधाँस खाइ घर आवह ॥१ मँछ नीरा चारा कहँ धावइ । लेके भगत भंडारन आयइ २ सोवा से नर सेवा जायी । कहाँ घटाउ होई गयउ अदाई ॥३ तोहि कैस करिहौं पछितावा । सँवर नेर अँगराँवहिं आया ॥४ देवस चार तुम्ह देंह भुखाइह । साई मोर करका घट जाइह ॥५ भँवर जो पतरै वैसे, सील मानथ जो भुलाई । खिन एक लि*] पास रस, उदरै कँवल सर जाइ" ॥७ पाठान्तर–चम्म प्रति- शीर्षकमर्दानगी व दिलावरीए लोरक गुफ्तने मैना व जहालत नमूदन चाँदा रा (मैनामा रोरकको वीरताको यहाई करना और चाँदको नीचा दिसाना)। १- सरबर । २-नीर | ३-भंडारहि । ४-सोवद । ५-यहा यारि हर । ६-कह कह बहुल होइ पछतावा । सँवर कोइल अँबराह आया ।। ७-या 16-मवर यह पतरें चैमिये, युल मानत भुलाइ। ९-रिन एक ते यास रस, भँवर चल सर जाइ ।।