पृष्ठ:चंदायन.djvu/२५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२४१
 

२४१ २८७ (मनेर १४४अ) रसीदने विरस्पत यरे चॉदा (बिरस्पतका चाँदके पास जाना) विहफइ नारि आइ समुझाई । चाँद जीउ चैन बहुरि फिरि आई॥१ चन्दन अस्तिर घिस तन लावा ! येइलि चंपा भरि सीस गुंदण्या २ तिलक माँग चख काजर कीन्हाँ । पस पान मुख धीरा दीन्हाँ ॥३ अभरन पहिरा अउ गिय हारू। हाथहिं मेंहदी किया सिंगारू ॥४ सोरह कराँ सपूरन भई । लोर लागि मालिन घर गई ॥५ जनम्ह नखत लिखि पायी, गरह जो भवइ निसंग ॥६ सूरज सथै चाँदा पूनेउ, भयी बुलंग कुलंग ॥७ टिप्पणी-(५) लागि-निकट | २८८ (मनेर १४४) दास्तान रसीदने बिरस्पत बरे चाँदा अस्त (विरस्पत के चाँद के पास जाने की कथा) दिन भा विहफड़ आइ तुलानी । भई उतावल चाँदा रानी ॥१ सुरज सँमति बिरसत पाया । लेत खाँड़ मालिन घर आवा ॥२ पाँयत घर जो चाँद युलाई । विहफइ कही सुजन दिन पाई ॥३ बिहसत चाँद लोर पहँ आई । सीस नाई धनि ठाढ़ी भई ॥४ अइसन चलहु न सुधि को पावा । साँझिचलहुन कोउ गोहन आवा।।५ लोरक कहा सुनहु धनि चाँदा, गवन करव अब साँझ ६ भोग गिरास पिरम रस, हरदीपाटन माँझ ॥७ टिप्पणी-(२) संमति-सम्मति । (५) भइसन-इस प्रकार । (६) करम करूंगा। (७) विरास-बिलारा । पिरम-प्रेम |