पृष्ठ:चंदायन.djvu/२५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२४२
 

२४२ २८९ (रीरेण्ड्स २२६ : मनेर १५५४) रस्त्तने रोरव दर सानये जुन्नारदार व पुरसीदने वस्ती सांद (माह्मणके पर जाकर लोरका यात्राको साइत पटना) रैन खेलानौ' भा भिनसारा । पंडित घर लोर सिधारा ॥१ पवरी जाइके आपु जनावा । पाटा पान बीर कह' आवा ॥२ पाट वैसार दीन्हि असीसा । चँदरवाते सूरज मुख द["सा*] | किहँ चेत परभा परकासू । पँवरि पुजै कीहिं हम पास ॥४ काह मया हमकहिं चित चढ़ी । भई अजोर जइस हमरी मढ़ी ॥५ कहु जजमान सो कारन, जिंह इहवाँ तुम आयहु“६ चॅदर जोत मुख अदनल, किंह लग चिंत उचायहु ॥७ पारान्तर-मनेर प्रति- शोर-दस्तान रफ्तने गेरव वरे नजूमी पुरमीदन 3 रा (लोरका ज्योतिपोरे पास जाकर पृटना)। १-रैन सेलिदै ।२-के। ३-सोवाँ पडित बाद जगावा । -पे। ५-पैसार पुनि । ६-चेंदर भाव सूरज पंह दीसा । ७-काह चेत चित भा।८-तरप जो (१) कोन्हा । ९-भई उजियार पीर ये मही। १०-जिंद लग ट्वाँ आया । २९० (रीरेण्डम २२० : मनेर १४५५) गुप्तने जुगरदार यी नीक व माअती ग्वच (माह्मणका शुभ घड़ी दताना) मुरुज कहा मैं चाँद'युलाउन । सगुन पाँच दै पुरुष चलाउन ॥१ घरी मॉर्ड के रामि गुनाये । सत्रही सिधिर्व पण्डित पाये ॥२ मोर गुनित तुम लोरक जानहु । कहउँ चोल मो सच कर मानहु ॥३ दिन दम तुम्ह कह चाट चलाब । पुनइह पन्थ भला मिधि पाव ॥४ एक दोइ गाद में कुछ देखेउँ' । आगे होइ प नाही लेखे ॥५