पृष्ठ:चंदायन.djvu/२५४

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पाठान्तर-एक ही कडवक दो पृष्ठोंमें अकित है। पृ० १४६५ मे निम्नलिखित पाठान्तर हैं। १-सा । २-नगम्भ। ३-गोडन काढ गेदु । ४-चख झर झर परा । ५-रूप । ६-तुम मह चाँदा । ७--अब मॅह । टिप्पणी-(३) मैना माजरिलोरककी पत्नी मैना नाम माजरि (मजरी) भी था । मैना, मैना मैंजारे और माँजरि, तीन रूपों मे उसका उल्लेख इस काव्यमे हुआ है । मैनावे रूपमे तो इसमा उल्लेव मुख्य रूपसे है ही। मैना मॉजरिके रूपमें इस कडवकके अतिरिक्त कडवक २९५ मै और वेवल मोजरिये रूपमे रडवक ३५० (बम्बई और मनेर प्रति), और ४०२ मे उल्लेस हुआ है। मैंना और मॉजरि, दोनो ही नाम स्वतन्त्र रूपसे एक ही कडयक २९८ में आये हैं। उससे स्पष्ट है कि वे नाम एक ही व्यक्ति के हैं। लोरफकी पानीके ये तीनों ही नाम लोक-कथाओमे भी मिलते है । २९४ (रेण्डा २२९ : मनेर 1४८अ ) लिबासे सियाह पोशीद रवान शुदने लोरक व चाँदा (काले बस्न पहन कर लोरक और चाँदका रवाना होना) काली झगा पहिर दोइ चाले' । रची करेज चॉद मुई पाले ॥१ ओडन खाँड लोर कर गहा । दोइ जन चले न तीसर अहा ॥२ कर गहि निसरी धनुक कुवारी । इह विध कीन्ह सोचाँदानारी ॥३ गोवर छाड़ कोस दम भये । छाड़ बाट औपर्थ होइ भये ॥४ तँहवा होत सो कॅवरू भाई । चलत लोर सो भेटइ आई ॥५ सूरुज चला ले चॉदहि, कइ गोवर अँधियार । ६ बोजु लवइ घन गरजे, निसर न कोऊ पार" ॥७ पागन्तर-मनेर प्रति- शीर्षक-पीइतर रयान शुदने लोस व चाँदा (ोरक और चाँदका आगे रहना)। १-कार झग पहिर के चाले । २--सर। ३-सरग । ४-बी। ५---गये । ६-औवट । ५-घर के बसाहुत कँवरू भाई। ८-चल हु चाँद सो भेद जाई। ९-सुर। १०-पार पार ।