पृष्ठ:चंदायन.djvu/२५५

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टिप्पणी-(१) मगा-लावा टीला पुरता; अँगरखा । (५) तइयां-वहाँ, उस जगह। २९५ (रोटेण्ड्म २३० : मनेर !४८) शिनाख्तने इँवर रोख रा दरमियाने राह अब पसे ऊ चौदा (मार्गमें कुंवरूका लोरक और घाँदको पहचानना) कुँवरू आवर्थ' चीन्हाँ लोरू । धावा संखि चलायहु गोरू' ॥१ पाछै हेरत चॉदा आई । जिउ कॅचरू कर गयउ उड़ाई ॥२ कहसि लोर ते भला न किया । कित ले चला महर के धिया ॥३ विरियहिं बरम नाँग बुधि होई । तिन्ह के संघ न लागइ कोई ॥४ यदी सोलिन तुम्हरी माई । सिंहकै मया न तुम्ह चित्त आई ॥५ वारि वियाही मैंना मॉजरि, लोरक आह तुम्हार ॥६ पारि गूढ़ ररि मरियहि, भाई वचन हमारं ॥७ पाठान्तर-मनेर प्रति - दशीप-शिनाख्तने (चरु लोप रा (चस्पा लोररको पहचानना) १--अगुमत । २-रहा सपि चला सर गोरू । ३-देसह । - तुम्ह । लद चले। ६-तेरे। ७-तिहदे मयों न जिउ मह आई। ८-यारि बियाही मैना । ९-म०परहि चिन्त नुग्हार । टिप्पणी-(१) मायय-आता हया । धीन्हा-पत्याना । संखि-सदाक होकर । गोरू-टोर, गाय भैंस आदि । (२) पाछे-पौ। हेरा--देखते हो। (७) सिरियहि--त्रियों की । जरम-उन्म । नॉग-अल, थोडा । (७) रि-रट रट पर। २९६ (गरम २३ : पपई २६ : मनेर १४९४) गुस्तने चाँदा (बारा दिवायते श्य. (चांदका कुंघरू से अपने प्रेमही दात कहना ) चाँद कहा कँवरू मुर्नु' पाता । लोर पोर जिउ एक राता ॥१ जेयतै जीउन छाडेउँ काऊ । दिन अस भये मो लोगपठाऊँ ॥२