टिप्पणी-(१) मगा-लावा टीला पुरता; अँगरखा ।
(५) तइयां-वहाँ, उस जगह।
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(रोटेण्ड्म २३० : मनेर !४८)
शिनाख्तने इँवर रोख रा दरमियाने राह अब पसे ऊ चौदा
(मार्गमें कुंवरूका लोरक और घाँदको पहचानना)
कुँवरू आवर्थ' चीन्हाँ लोरू । धावा संखि चलायहु गोरू' ॥१
पाछै हेरत चॉदा आई । जिउ कॅचरू कर गयउ उड़ाई ॥२
कहसि लोर ते भला न किया । कित ले चला महर के धिया ॥३
विरियहिं बरम नाँग बुधि होई । तिन्ह के संघ न लागइ कोई ॥४
यदी सोलिन तुम्हरी माई । सिंहकै मया न तुम्ह चित्त आई ॥५
वारि वियाही मैंना मॉजरि, लोरक आह तुम्हार ॥६
पारि गूढ़ ररि मरियहि, भाई वचन हमारं ॥७
पाठान्तर-मनेर प्रति -
दशीप-शिनाख्तने (चरु लोप रा (चस्पा लोररको पहचानना)
१--अगुमत । २-रहा सपि चला सर गोरू । ३-देसह । -
तुम्ह । लद चले। ६-तेरे। ७-तिहदे मयों न जिउ मह
आई। ८-यारि बियाही मैना ।
९-म०परहि चिन्त नुग्हार ।
टिप्पणी-(१) मायय-आता हया । धीन्हा-पत्याना । संखि-सदाक होकर ।
गोरू-टोर, गाय भैंस आदि ।
(२) पाछे-पौ। हेरा--देखते हो।
(७) सिरियहि--त्रियों की । जरम-उन्म । नॉग-अल, थोडा ।
(७) रि-रट रट पर।
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(गरम २३ : पपई २६ : मनेर १४९४)
गुस्तने चाँदा (बारा दिवायते श्य.
(चांदका कुंघरू से अपने प्रेमही दात कहना )
चाँद कहा कँवरू मुर्नु' पाता । लोर पोर जिउ एक राता ॥१
जेयतै जीउन छाडेउँ काऊ । दिन अस भये मो लोगपठाऊँ ॥२
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