पृष्ठ:चंदायन.djvu/२५८

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२४ (३) सरवानी-पाकित हुई। (५) डाई-खडे। २९९ (रलैण्ड्स १३४) रवान शुदने लेरक व चाँदा पशिताव ( तेजीसे लौरक और चाँदका जाना) चले दोउ भुइँ पाउँ न धरहीं । पेग वेग उतावर भरही ॥१ चला लोर मिलि चॉदा आई । सोलिन मैंना विसरी माई ॥२ चॉदहिं देसि लोरकहिं कहा ! कैमैं सो मिलत जो चित अहा ॥३ औ अस कहा महिं तूं लोरा । नीके मन चिंत करिहै मोरा ॥४ तोर सनेह छाडेउँ पर बाह। के बोरहु के लाबहु पारू ॥५ साँझ परी दिन अथवइ, लोरक चॉदा दोइ ।६ औघट घाट गॉग कै, रहे बिरिख तर सोइ ॥७ टिप्पणी-(१) योरहुडुबा दो। (७) सर-नीचे। ३००-३०३ (अनुपलब्ध) ३०४ (रीलैण्ड्स २३५ मनेर १५२४) रसीदने लेरक व चौदा बरे गगा व इशारत कदने चाँमा मल्लाह रा (लोरक और चाँदका गगाके किनारे पहुँचना और चादका मल्लाहको सकेत करना) गाँग सरिस तमासन करना। लोरक जाइ लेत' एक छरना ॥१ चॉदा फिर फिर आपु देसारा । मकु सेवट पोहि देसत आना' ॥२ मॅरंगा ठाँउ जो सेनट आग । कर कंगन चॉदै झनकाना ॥३ सेन्ट देख अचम्मै रहा 1 तिरिया एक अरें अहा ॥४