पृष्ठ:चंदायन.djvu/२६०

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टिप्पणी-(३) सरगा-नाव । (७) जौलहि--जब तक | ( रोलैण्डस २३७५) सबारी शुदने लोरक व चौदा वर करती (लोरक व चाँदका नावमें बैठना ) माँझ गाँग हुत सेस्ट कहा । कउन नारि घर कहया अहा ॥१ रैन कहाँ तुम्ह कोन्हि बसेरा । नदि नियर न देखेउँ गाँउ न सेस॥२ घरहुँत भया चलेउँ रिसाई । भर एक रात गॉग ही आई ॥३ ते महरी के जाति अकेली । साथ न कोऊ सखी सहेली ॥४ काह न कोउ मनाक्न आवर । जिंह घर आह सो आउ न पावा ॥५ सास ननद मोर भासेउँ, दीस न कुँवहें पनार ६ पिया सनमोर साई विरोधा, यहिं छाडेउँ घर बार ॥७ ३०७ (रीम २३८ मनर १५२य) गुजार गुदने लोक व चादा अज आये गोंग (लोरक-चाँदका गगा पार करना) चाँदहिं खेवट सो अस कहा । अभरन मोर पहिं पारहिं अहा ११ खेवट सॅरगा सॉच ले आया । बोलतहिं लोरक माथ उचाना ॥२ दीन्हि तराई सेक्ट कहे । दोइ जन चले न तीसर अहा ॥३ लोर चाँद दोई सॅरगा चढ़े । एक काठ के दोउ गढ़े ॥४ शेवट ठाढ अरवारहिं रहा'। करिया' लोर आपु' कर गहा ॥५ अगों चाँद सयानी, पाछे' लोरक वीर ६ दयी संयोग गॉग तर आयि, चूडत पाया तीर ॥७ पाठान्तर-मनेर प्रतिम येवल अतिम चार पत्तियाँ है । इनके साथ आरम्भको तीन पत्तियों पडवर ३०५ की हैं।