पृष्ठ:चंदायन.djvu/२६१

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१-चाँद लोर आइ सरगहि रहे। २-अति सरूप दर के गरे। -पेवट उतर पार पावहिं गहा । ४-परसा (बह देवल नुस्ताको भूल है। --आपुन ! ६-आगे 10-पाछ। ८-गाँग सब उतने बूडत पायो। (हिंड्स २३९ · मनेर १५३) आदमने यावन बर किनारे गगा व पुरमीदन मल्लहरा (गंगाके किनारे भाकर दादनका मल्लाह से पूछना) तौलहि बायन आइ तुलाना । पूछा केवट पिरम भुलाना ॥१ चेरी चेर मोर दुइ आयें । इह मारग तिहिं देखी पाये ॥२ सुन केवट मुख देखत हँसा । कुँवर फॅचरी इक इहवाँ वसा ॥३ पुरुख लुकान तिरी दिखरावा । ही रंगराता सिंहक आवा ||४ यहिं राजा वहिं रानी जानी। कहूँ साच तिहि जानु न कहानी ||५ उहै नाव ले डाड़े लाये, ऊ फिर चेर न होई १६ पावन देख दौर धस लीन्हे, इहँ बिरहें रोई॥७ पाठान्तर-मनेर प्रति- सीर-दालान आमदने यावन दोहरे चाँद वे रसोदन (चौदवे पति बावनवा आ पहुँचना)। १-चेरा नेरि मेरे दो। २-दह मारग ते देखी कोई। ३-मुनके पेवट मुग्प देख हसा । ४- वरि कुँवरा । -तिरिया । ६-२गयटी विह। -अत रपन्त विचस्तन सोई। उन रावरी पुरस ओ जोई ॥ ८-उद दोउ मैरगा लगा तीहि, उन गेरी चेर।:- पान दौर ऊभ पन लेने, बढते मै तिह नेर । ३०९ (रिंदम २१० : मनेर १५३य) दर गाग उफ्नादने यावन व दुशोरर दर्दन (पापनम गंगामें दर लोररस पीला करना) धनुक यान पावन नर' धरा । लोरक देसि गाँग महँ परा ॥१ जउलहि पावन पार न भयऊ । तालहि लोर कोस छ गयऊ ॥२