पृष्ठ:चंदायन.djvu/२६४

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२५५ तुम्हारा। ६-तपत । ७-जस देरोउँ तस मैंके आयउँ । दयीका लिा हुत सो पायउँ ।। ८-बावन वहाँ सुनदुतू मोर। ९-भये सो कुकुह लोर | टिप्पणी-(१) का लागि-किस लिए । कोन्हि-किया। (२) पहि-पास ! आहो-थी। (३) पिरम-प्रेम | कार-काल। राता-रत, यहाँ तात्पर्य गोरसे हैं । (रीरेण्ड्स २४३ : मनेर १५५४) जवाय दादने रायन चाँदा व अन्दाख्तने तीरे दुअम्बरू (बावनका चाँदको उत्तर देना और दूसरा तीर छोइना) अहि पापिन तिहिका मारों । नाक काटि के देस निसारों ॥१ तिहि अस तिरि गोवरॉ' धसि लेई । बात कहत अस ऊतर देई ॥२ कम लोरक' सेउँ मोहि डराव । तू पड़बोल जान जो पाइ॥३ तिहि लग लोरक जी गॅवाइह । भेट भई' अब जान न पाइह" ॥४ पुरुख मार ओडन महि" फोरउँ । काटउँ मूंड भुआदण्ड तोरउँ ।।५ अस सुन लोरक (सिंघ) कोपा, ओडन साँढ सँभार॥६ पावन एक फोक सर छाड़ा, गयउ चिरिस सो फार ॥७ पान्तर-मनेर प्रति- शीर्षक--दास्तान जराब गुफ्तने बावन वा चाँदा (चाँदको यायनका उत्तर)! १-अरो। २-तिहि । ३-गोवा (३' लिग्पनेसे छूट गया प्रतीत होता है)। ४- अन । ५-लोर। ६-उरपामि। ५-न पै पोल जाइ जम पावसि | ८लगवाथा । :-भई भट । १०-पाचा । ११- सेउ। १२-अस मुनि गेरक मिघ अम गामा, ल्इ ओडन सेंभार । १३-पावन एक जोहि सर छोडा, अगवदि धीर संभार ।। मूलपाठ-(६) सिंग। टिप्पणी-(१) तिहि-तुझको । निमा--निकाएं। (३) वयोल-लम्बी लम्बी यात करनेवाली, बानी ।