पृष्ठ:चंदायन.djvu/२६६

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२५७ ३१५ (मनेर ३५६व · शेरैण्ड्स २५५) दास्तान गुफ्तने बायन वेसखुने खुद रा (बावनकश स्वगत-कथन) बावन कहा पाच है। मोरी । तोर पुरुष यह तिरिया तोरी ॥१ लोग कुटुम्ब महिं कहियउँ जाई । मै तिहि दीन्हों गॉग बहाई ॥२ लोरक चाँद बहुर घर जाई । बोली' पार्छ लिखी बुराई ॥३ देउर माँझ लोर सर काढ़ा । औ दुनु भौन हुत ठादा ॥४ लइ चॉदहि आगे के चला । लोरक बीर पार्छ भा भला ॥५ चाँद कहा सो मूरस, जो अइसहिं पतियाई १६ जाकर लीजइ यार पियाही, सो काहे कर पहुनाइ" ॥७ पारान्तर--रीलैण्ड्स मति- शीर्षक-गुप्तने बावन लोरकरा बाद उफ्तादने हर सह तीर साली (तीनों तीर साली गनेके बाद बावनका लरक्से कहना) इस प्रतिम पनियोका प्रम ४, ५, १, २, ३ है। १-यह । २~लोर बीर यह तिरिया तोरी । ३-लोग कुटुभ्य हा ऑसी जाई। ४---लोरक बरि घर अपन जाई। ५-नौली। ६–लिसी! ७.-ओडन पट (१) बैठ दुत ठादा । -लोर। ९-चाँद कहा सुनु बौरी लरक, अदत यहरि को जाइ । २०-जिहर वार रियाही लगने, सिंह कइसे पतिया। टिप्पणी--(१) पाच-वचन । (२) दीन्हें--दिया । गाग--गगा। (३) बोरी-मम्भवत यह पपाठ है। रोमका पाट 'नौली' बीर जान पड़ता है। नाली (नवली)-गली, युवती । पाछे-पी, ये कारण । (1) इस पनि के उत्तर पदका पाठ दोनों ही पनियों में समुचित रूपगे पदा नही गया। (६) भइमहिदमी प्रकार, रिना सोचे समझे । पतियाइ-विश्वास परे। १७