पृष्ठ:चंदायन.djvu/२६९

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पाप चाप के आप उपारसि । मिलें माइ के बिउ हारति ॥५ कहति चेर तोर हौं, होई हौं भगसर के मुंह झाग ६ कहा तोर सेउँ सेवक, गंगेउ अइस बोल काहि भाग ॥७ टिप्पणी-(१) घर भाश-'गुहरावा' असा पिया पर भी सम्भव है। प्रसग रूप न होनेते पाया नियर बन्ना सम्भव नही हैं। ३२० (हिंम २५८ : दन्दई ४४) ग करने लोक या कोतवाल व विशदानी (सोरकका कोतवाल और पिपादानास पुद) लीन्हें डॉक फिरा कोतवारा' । बोलत चोलि माँछ सहि मारा ॥१ देखि अकरें चितहि न लावहिं । ढुंह महि पने ले चाहहिं ॥२ देहि, दान औ चिनति कराही । कहाँ चलहु राजा पहँ जाहीं ॥३ कहा न सुनें औ दान न लीन्हैं। बात कहत' अनऊतर दीन्हें ॥४ लोरक चाँदहि अस मत कही" । अस मनुमैं के पैरी भई" ॥५ लोरक खड़ग हयवासा, चाँदें धनुस चदाइ ।" दोउ जन सपही मारे, बान न कोऊ पाइ" ॥७ पावन्तर-मई माते- दोष-मरित्ने उपवातियान दम्पाने या अगने चोदा करक (चाँद और तोरवप मागम दागिलोयाना )। १- पतवाय । २-मन। ३-सार। --सारा ~दो महेंदपाला ६-दान दे आ गिर गया। ७-~पी। ८~ोहन। - न्त । १०-लोर नौर 17 पाहिम। ११- अग दिनती ना हर ग्रं। रमर हवाग औटन, बाँदा म सार १३-टोर गर , रन पोऊपाउ॥ ३२१