पृष्ठ:चंदायन.djvu/२७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२६३ ३२४ (रिंण्ड्म २५१ मनेर १६०) पुरसीदने राव विद्या रा, व जवाब दादने ऊ (रावका विद्यामे पूछना और उसका उत्तर देना) विद्यइँ आन धोर' एक दीन्हाँ । पूछहि यात' सो आगें कीन्हा ॥१ डरनहि पुरुख सो कैसे अहा' । कौन सॅजोग कौन विधि रहा ॥२ एक पुरुस औ दूसर नारी' । तीसर न कोउ नाउ औ बारी ॥३ अत बुध होंत बच कहत न सोई । चैं सतरी पुरुस औ जोई ॥४ यह रे अचूर्फ पान सर मारइ । वह रन खेले' सॅरंग सँभारइ १५ देख सॅजोग राइ तिहें बोलेउँ, मॉगे अजकर दान ॥६ जन मानुस सम"जीउ गॅवायउँ, आपुन नाकि औ कान १७ पाठान्तर-मनर प्रति- शीर्षक--पुरसीदने राय बूदई रा ( रावा बुदद से पृछना)। १--धुदई तुरी पन्नान । २-~बात पृछि। ३-टर तिइ पुरुस कर करा आही । ४--रही। ५-एक पुरुप दूसर हइ नारी । ६-~सस न कउनो नाऊ बारी । ७--रूप दुह फै सब जग मोड्इ । रैन मॉझ चॉद जस सोहह ।। ८-~-वह अचूक | ९-~वह दुन पतरी । १०-दयी सँजोग दीह मत मुहि कहें । ११-जिद्द माँगे जीउ ! १०----उपरी । ३२५ (रोलैण्डम २५२ मनेर १६०५) मुशावरत कदने राव करावा दानायान खुदरा (राव करका का अपने मन्त्रियोंसे परामर्श करना) बात सुनत' सभ मिले सयानें । के तुम्ही भरपइ भये अयाने ११ जो परदेसी एक नर होई । लस जो मिले मान लें सोई॥२ यहि कर साहन जो मुधि पारइ । दयी सॅजोग दल न चलावई ॥३ जानड बात सभै सयँसारा । एक हारी औ होई मुंह कारा ॥४ चाहे पाच दई वह (कराई । अम सतरी जो रहु अरकाई ॥५