पृष्ठ:चंदायन.djvu/२७३

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यह पर साध बुलाई, अपरित वचन सुनाई ६६ गाँउ ठाँउ सब वहँको दीजइ, जितभावइ वित जाइ" ॥७ पाठान्तर-मनेर प्रति- शीपंग-दास्तान तरहीम कर्दन रश मारतने मर्दमान (अपने जाद- मियोंसे परामर्श) १-मुनी । २--मयाने। ३-तुम्ह पुनि | Y~-अपाने । ५-जो परदेसी आपा होई । ६-~-एपहि एक पियरे भोदं । ७~दयो सन्नेग र बाहि वसलावद। -दार । ९-~मुहाइ । १०--तिह। १५-रित चित भावर र आद। ३२६ (रोखण्ट्म २५३ : मर्नर १६६४) पिरतादने राब परका द६ जुन्नारदारान रा बरे लरक (राय करंकारा दस माह्मणों को लोरदके पाम भेजना) चाँमन दस विधवाँस बुलाये । योल' पाच राउ' चलाये ॥१ जिहँ पर आपई तिहँ फुन आनहु । जो यह कह सोड़ तुम्ह मानहु ॥२ कहाँ दानि हुत यह अन्यायो । नाक कान मल कँचि कटाई ॥३ और जो मारें यह कोतयारी तिहि आँगन है नियाउ तुम्हारा ॥४ राइ पूर" दई तुम्ह हँकराई । जब चित पावई तब उठ जाई"५ हम गजा" के परजा, विधवॉस पण्डित सभ आह" ॥६ दिस्टि पसार देखें को पावइ, इतं चूकत काह" ॥७ पाटान्तर-मनेर प्रति- भीय-दास्तान तब्बीदने राव जुन्नारदारान (रावरा मादागाका चुना) १ वाथ (१)। २राद। ३-विधि । ४-विधि। ५-नछ । ६-चटु दानी हुने भन्यायी। यीन्दि कयाद । ८-पुतवा ९-~ो तिह । १०-~याथ ()। ११-पुनि नित भावद नम्इ जाद। १२-यमा (1) ११३-ऑदि । १४-दिष्टि अपार देगारो पारे, न जगत ह आह ।।