पृष्ठ:चंदायन.djvu/२७७

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२६८ ३३१ (बम्बई ३० • मनेर १६२ (१)प) मुनीदने गुफ्तारे लोरर मरहमते यर्दने राजा पर लोरर (ोरसी दात सुनार राजाका रोरक्पर उदारता दिखना) सुनि राजा अस किन्हि बिसाऊ । भाड हमार जो आह पटाऊ ॥१ दीन्हि मिंघासन (अउर) तुरंगा'। पन्ध लाग तुम्ह राड करंका ॥२ टका सहस' परसाध दिवाई । तुरत ग्रेग पतरा लेइ आई] ॥३ सेउ करो जो डहवाँ रहह । जो मन मान सिंह तुम्ह जाह॥४ तिह के बात न पूछे कोई । जिहके साथ तिरी एक होई ॥५ राइ बाँभन दुइ दीन्ह', जित भावड तित जाहु ।६ घर के कही न पारौ, मया" करहु तो रहाहु ॥७ मूल पाठ-(२) आवउ (अल्पि, वाव, वाव) । ३' स्थानपर 'बाव' लिरिपती पाटान्तर--मनेर प्रति-- शीक-मरहमत पदंने राव करका पर लोरर (राव वरकावा लोरक्के प्रति उदारता प्रकट करना) १- अउर । २-तुरगू । ३-यह लाग तुम्ह लाग कर1 ४ाख । ५-लै आयी। ६-परह। ७-नहि जो मन होइ तिहबा जाह। ८-बात परै न कोई। :-जो परदेसी राहगा होई। १०--राइ पाँभन दस दोन्हें, अगुवा । ११-मपार । ३३२ (लैण्ड्म २५८ : मनो १२ (२) अ) अर्ज दास्त कर्दन लोरर पेशे राव बरका ___ (राब करंकासे रोरका निवेदन) मुन राजा' एक पचन हमारा । हाँ जास चाही चेर तिहारा' ॥१ हरदी आहि हमारा लोगू । मन धरि चले दोउ तिहँ जोगू ॥२ अम सुन राइहिं बीरा दीन्हा । सीम नाइके लोरहिं लीन्हा॥३