पृष्ठ:चंदायन.djvu/२८

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पदमावत, मधुमालती आदि अन्योंके समादकोंको यह सुविधा रही है कि उनके सानुस पारसी लिपिमे अक्ति प्रतियों के साथ-साथ नागराक्षर अथवा कैथी लिपिमे अक्ति प्रतियाँ भी रही हैं और इस प्रकार उनके सम्मुस अन्यका एक ढाँचा खडा था। उन्हें पेवल शन्दो पाठ रूपका निधारण करना था। मेरे सम्मुख न तो कोई नागरा- क्षर प्रति थी और न क्याका रूप ही जात था । कविकी वर्णन शैलीकी भी कोई जानकारी न थी । ऐसी स्थितिमें फारसी लिपिमे अस्ति हिन्दी भाषाके इस अन्यके पाठोदारका कार्य पत्थरसे सर टकराने जैसा था। कोई अन्य यदि नतालीक लिपि (आधुनिक पारसी लिपि)में हो और उधम जेर, उयर, पेश और नुक्ते भी अपने स्थानपर लगे हों तो भी सरल्तासे क्सिी हिन्दी शब्दके वास्तविक रूपमा अनुमान नहीं किया जा सकता । यहाँ तो जो प्रतियाँ मेरे सामने हैं, वे सभी नस्स (अरवी लिपि शैली) में हैं और उनमें जेर, जबर, पेश तो है ही नहीं, नुतोंका भी अभाव है; और यदि कहाँ नुको है भी तो यह निर्णय करना कठिन है कि वे अपने ठीक सानपर ही लगे हुए है। इस लिपिमें नुक्ते कहीं भी रसे जा सकते हैं। ऐसी स्थितिमें यह कहना कि मैंने पूर्णतः शुद्ध पाठोदार किया है, प्रवचना मात्र होगी। यही कह सकता हूँ कि मूल शन्द तक पहुँचनेकी यथासाध्य चेष्टा मैने की है। फिर भी अनेक स्थल ऐसे हैं जहाँ पाठके शुद्ध होनेमें मुझे वय सन्देर है। उपलब्ध सामग्रीको प्रम-बद्ध रूप देनेा पूर्ण प्रयत्न क्यिा गया है, फिर भी कुछ ऐसे अदा हे जिनका पर्याप्त सवतके अभावमे उचित स्थान निश्चित करना सम्भव नहीं हो सका है । ऐसे स्थलगेपर अनुमानका सहारा लिया गया है। प्रस्तुत अन्धका कार्य आरम्भ करते हुए मैंने शुद् पाठ (त्रिटिकल टेस्ट), वासुदेवशरण अग्रवालकृत पदमावती सजीवनी व्याख्या के अनुकरण पर व्याख्या और आवस्या शब्दोंके अर्थ और उनके स्पष्टीकरण के लिए टिप्पणी देनेकी कल्पना की थी। पर पाटोद्धारका काम समाप्त होने पदचात जर इस ओर अग्रसर दुआ तो ज्ञात हुआ कि उपल्ब्ध सामग्रीरे आधारपर परिशुद्ध सम्पादन (निटिकल एडिटिंग) सम्भव नहीं है। उपलब्ध प्रतियाँ अधिकाशतः कान्य विभिन्न अगों के असा मान हैं। ऐसे स्थल थोड़े ही हैं, जो एक्से अधिक प्रतिमे पास हैं । परिद सम्पादनका कार्य तभी सम्भव है जब दो से अधिक प्रतियाँ, यदि पूर्णतः नहीं तो अधिकाश अशोंमे उपलब्ध हों। सगुद्ध पाटवे अभावमें प्रत्यकी पाख्याका कार्य भी कुछ महत्त्व नहीं रखता । जब तर पाठ शुद्ध और स्पष्ट होनेा विश्वास न हो, समुचित व्याख्या उपस्थित नहीं की जा सकती। अत. यह कार्य भी हाथमें न लिया जा सका। मन्थ में आये महत्त्वपूर्ण शन्दीका अर्थ और उनके स्पीकरणका कार्य रिया जा सरता था; पर यह कार्य मेरी अपनी दृटिम उतना सरल नहीं है, जितना कि इस दिशा में काम करनेवाले अनेक विद्वान समझते हैं। सींचतान कर शन्दोंका मनमाना अर्थ प्रस्तुत करनेमें मेरा विश्वास नहीं । किसी शब्द मावको समझने लिए उसके