पृष्ठ:चंदायन.djvu/२८३

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३४५ (अनुशल) ३४६ (रिंग्टन २६५ : दम्बई ३७) गिरिता पदंने लोक जज बेहोस चांदा (चांदी नारर लोरा पिटार) छाउ भाइ वाप' महतारी । तजउँ विचाही मैंना नारी ॥१ लोग कुटुंब घर बार पिसारेउँ । देख छाडि परदेस सिधारेउँ र गाँउ ठाँउ पोखर अवराई । परहरि निसरेउँ कवन उपाई ॥३ अरघ दरख कर लोभ न कीन्हेंउँ । चाँद सनेह देसन्तर लीन्हउँ ॥४ विच होइ बाट यात परी करतारा । न धनि भयउ नमीत पिपारा॥५ भई बात अब जानेउँ, चांदा तोर मरन निदान ६ जो जिउ जाइ कया कम देखहि', मैं का करब अवान ॥७ पाटान्तर-यम्बई प्रति- शोक-सनहाई प वेतोए खुद नन्दने हलेरक अजरा चॉदा दुग- ल्क शुदन (लोरका अपने अपन और विवशता पर तडपा और चाँदके लिये प्रेदशान होना)। १-बाप माइ । २-फेवान पाई (वार, न्ह, अलिन, न्न पे, आला, थे, नन) सम्भवतः अस्मि, मन आने के लिख गये हैं। पाठ किन उपाई है। ३-'पा' शन्द नहीं है । ४-मा। पहर बात कम बनहि, चौदा मोर ठन होत परान ।५-देन । टिप्पणी-(३) परिहरि-परित्याग करके । निमरेट-निकल। ३४७ (लिंग्स २१२ : पन्नई ३५ : मनेर १६५४) ऐजन (दही) जीउ पियारा निसर न जाई । दिन न गाँठि मरतेजें खाई ॥१ मरिहउँ कोई कर जोडपकारा । जीभ खांड हनि मरई कटारा ॥२