पृष्ठ:चंदायन.djvu/२८५

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२९६ जो यह पिरत और विरी पाह। नरक कुण्ड मह पुरखा पाहउँ ॥५ पत न होइ सत छाड़ें, हानि न होइ डर कान ६ तोरे बुधि चोर भजानों, धिय पराई आन ॥७ मूलपाठ-४) भाग। पाठान्तर-मनेर प्रति- शीर्षक-मलामत क्दने लोक कान दरल्त च (ोरका पेडको मना करना) --स्खा।२-महि । ३-डार डार कै चहली पाएँ। ४-राग। ५-देत देत मुर चहि गह दाना।६-सूरज चाँदहि निविभागा ७-~अब जो पिरित तिड और न बाहों। ८-नरक बुप्ड कम पाँचा (१) पा। ९-तोर दीर चोसर भैजान। टिप्पणी-१)दुखा-कष्ट, स्टेया। (२) जरिमूर-जड मूल । उपारों-उखाएँ । घर धार-दाल डाल हारों-जलाऊँ। (३) सरि-चिता। (५) पुरखा-पूर्वज। (६) कुर-बुल । कानाज, प्रति । ३४९ (रोटेण्ट्स २५४ : दम्बई १२ : भनेर ज) गुप्तने स्कोरर मर मार राव ताल्लुफ खुर्दन (होरकका सपके प्रति उद्गार और खेद) कारे' नाग सतुर पटपारे । मीत विछोह दीन्हि हत्यारे ॥१ परु महिं खातसि बहुत रे'कुजातो । काहे देखी नै मोर संघाती ॥२ तोरेइ ठाँउ आइ जो बसे । पुरुस छाड़ि कित नारी उसे ॥३ मन्त्र सक्ति के सतुर चलावा । के रे नाग तू गोहन आचा' ॥४ के वो" पावनवीर पठादा । चाँद उसहि"नाग होइ आवा ॥५ सिंह कारन मै" जीव निपारा," देसउँ भल सन्ताप ६ विह सेतृ पिचपाही, अरमज मारी साप ॥७