पृष्ठ:चंदायन.djvu/२८६

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२७७ पाठान्तर- बम्बई और मनेर प्रति-- शीर्षक--(ब) बामाद गुफ्तने लोरक वाकये हाले खुद अज बुराई चाँदा अन्देशमन्द (लोरकका सर्पके प्रति उद्गार और चाँदवे लिए व्याकुल होना) । (म०) मलामत मदने लोरक व बददुआ कर्दने मार रा (साँपकी भर्सना करना और शाप देना) १-(4) काले । २-(५०, म०) बटवारे । ३-(३०) मीत । ४- (ख०, म) र । ५-(०, म०) काहे दोखी मोर सघाती । ६-(२०) पुरुख छाडि मारिहि कस से। (म.) पुरुरा छाडि कस तिरिहि उसे । ७-(च) कैं। ८--(ब०, म०) पठावा। ९--(40) कर काल हूँ गुहनहि लावा, (म.) के र काल तू गुहनै लावा । १०-(२०) तुहि । ११- (ब, म०) चाँदहि डसे । १२-(ब०, म०) जिह । १३-(म.) हौं । १४--(म०) नियारउँ। टिप्पणी-(१) वटपार-बटमार । (२) कुजाती--बुरे कुल में जन्मा हुआ। संघाती-साथी । (३) ठाँउ- स्थान। (४) गोहन-साथ। (६) यावन धीर-चाँदका पति । (६) विषपाही-बीच रास्ते । भरबन-अकारण शत्रुधा उत्पार करना । (रीलैण्ड्स २३५ : पम्यई ३६ : मनेर १६६५) अफसोस कर्दने लोरक अन मदहोशी चौदा (चाँदकी मूपिर लोरकका विलाप ) कैरे' कुदिन हम पॉयत धरा । कैरे' कलाप' मना कर परा ॥१ करे कुटुंब जिउ भारी कीन्हाँ । कैरे सराप पाई मुहि दीन्हाँ ॥२ घरी धरत गा पंडित भुलाना । के हम कुसगुन' कीत पयानों ॥३ इत बड़ भयउँ न चॉट" दुसायउँ । कउन पाप दइया मैं" पायउँ ॥४ यह रे" महर घिय नारि अदोसी"। कैरे" निपूती चाँदा कोसी ॥५ कै गयउँ कछु दइ मुकरावा", दोस भुवंगहि लाग ।६ कउन नीद तुम पूती चाँदा, सपर्ने भयउ सुहाग ]७