पृष्ठ:चंदायन.djvu/२८७

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२८ पाठान्तर-यम्बई और मनेर प्रति- शीर्पक-(२०) यदक्दारिये खुद नमूदन लेरक राव अन्देशमन्द गुदन बुराई चाँदा रा (लोरक्सा चौदके लिए यथित होना और पश्चाताप करना) । (म०) याद पर्दने लोरक साअते यद असर रफ्तन (लोरक्का कुसाइतमे याना आरम्भ करनेकी यात याद करना)। १-(२९, म०) र । २-(२०) के र । (म०) कै। ३-(म०) पराप! ४-(१०, म.) माँजर । ५-१०म०)२६-(२०) वैर; (म०)-के । ७-(ब) मुहि । ८-(२०, म.) क। ९---(५०)मैं सगुन, (म०) कै युसगुन हम । १०--(ब०, म०) चॉट न । ११- (म०) हौ । १२-~(१०) यह र : (म०) वाहिर (१) १३-(व०) चाँद न दोसी, (म०) चाँद अदोसी । १४-(२०, म.) कैर। १५-(२०) पै हूँ पछु दइ मुक्राई , (म०) कै पेहूँ पछु दइ मुफ्लावा । १६- (३०, म०) तुम्ह । १७-(१०, म०) सतहु । १८-(म०) रुपनहिं । टिप्पणी-(१) फे-यातो । कुदिन-अशुभ दिन । पापत-प्रस्थान । कलाप- दुखसे व्यथित हृदयसे निकला हुआ साप। (२) सराप-शाप । माई-माँ, माता। (३) घरी-घडी। धरत रखते हुए। गालापा, 'का' पाठ भी सम्भव है । उस अवस्था में अर्थ होगा-क्या। फुसगुन-अपशकुन । कौतकिया। पयाना-प्रस्थान, रवानगी । (४) इत---इतना ! धार-चींटी । दइया -देव, ईदवर । (५) भदोसी-निदोष । निपूती-सन्तानहीन स्त्री। कोसी- शाप दिया। ३५१ (रीरेण्टम २६६ - बम्बई ३० : मनेर १६७) ऐजन (पही) नाग भेस होई धनि धरी । लोरहि राम अवस्था परी ॥१ रामहिं हनिचन्त भयउ संघाता । मुहि न कोइ बरु दई विधाता ॥२ मरिहउँ कोई जो करइ उपकारा । सिरजनहार देवहि निस्तारा ॥३ हनिनन्त सीता कह धसि मारी । लंका सोट सौंट के जारी ॥४ हौ पुनि चाँद हरी जो पाऊँ । लंका छाडि पलंका जाऊँ' ।५