पृष्ठ:चंदायन.djvu/२८८

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२७९ औसद भूरि चॉद किंह जिय',' कोऊ दे ताई"।६ सातो चादर" सात सुई, इक इक इहउँ जाइ ॥७ पाठान्तर-यम्बई और मनेर प्रति- शीर्षक-(२०) वाकये हाले खुद नमूदने लेरक जज (१) राम रा उफ्तादने बूद बराये सीता रा (सीता हरणसे राम की जो अवस्था हुई थी उससे लोरकका अपनी अवस्थाकी तुलना करना)। (म०) परियाद व जारी वर्दन लरस व गरीची व तनहाई खुद रा (लोरकका अपनी विवशता और असहाय अवस्थापर खेद करना)। र--(०. म०) होइ कै । २-(ब०, म०) हरी। ३-(२०) केउवन, (म.) फोउएँ। ४-(३०, म०) दूसर न केउ जो करि उपकाग।५- (५०, म०) देहि । ६.-(२०) पिर । ७-(म०) पुनि ! -(व०) हौं जो चॉद हरी सुन पावउँ। --(२०) धाउँ । १०-(ब०, म०) जिहँ । ११(ब) जीवइ (म०) पिरै। १२-(ब०) जो केउ दइ देसाद, (म०) जो कोई देइ देसाइ । १३--(ब०, म०) सरग । १४---(म०) टिप्पणी-(१) धनि-स्त्री, पानी । परी-पडा। (२) भयउ हुए । सघाता-साथी, सहायक । (३) सिरजहार-सृष्टिकर्ता, ईश्वर । देवहि-दे । निस्तारा- छुटकारा! (४) खोट खोट के जारी-चुन चुन कर जलाया। (५) एका खादि पलका जाऊँ इस मुहावरेका प्रयोग कुतान और जायसीने भी किया है (मिरगायति १०२१३, पदमावत २०६।३, ३५८१३) । भोजपुरी क्षेत्रमें यह मुहावरा आज भी बोल चाल्में प्रचलित है। निकटवर्ती उपलब्धिको छोडवर क्सिी दूरस्थ वस्तु लिए प्रयास करनेके प्रसगमे लोग इसे चरितार्थ किया करते है। प्रस्तुत प्रसगमें भाव इससे कुछ भिन्न जान पड़ता है। असम्भवको भी सम्भव पर दिखानेकी हिम्मत न्यन करने के लिए कविने इस मुहावरेकर प्रयोग किया है। जिन दिनों इस मुहावरेने रूप धारण किया उन दिनों, जान पड़ता है, ल्फा जाना भी मुगम न था और पल्का तो कोई ऐसी जगह थी जहाँ सामान्यत पहुँचना असम्भव समझा जाता था। पलका (स० पाताल एश>पायारल्या पायाल्का> पालका>पल्या) नामसे ऐसा प्यनित होता है कि त्या की तरह वह कोई अति दूरवर्ती द्वीप था। हो सकता है