पृष्ठ:चंदायन.djvu/२९

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मूलतक जाना आवश्यक है। इस अन्यमें आये हुए शन्दोके मूल्में एक ओर सस्कृत, प्राकृत और अपभ्रश है तो दूसरी ओर अरबी और फारसी। अतः यह कार्य इन भाषाओं कोपोंके बीच बैठकर ही किया जा सकता है। इस प्रकारके कार्यको प्रगति सदेव मन्द हो होगी। दुर्भाग्यसे इन दिनों इस कार्यको हाथमें लेने के निमित्त मेरे पास समयका अभाव है और मेरे मित्रों और हितैपियोंको इतना धैर्य नहीं है कि वे कुछ समय तक इसके लिए रुक सकें। उनका निरन्तर ताजा है कि मूल अन्य मीप्रसे शीघ्र प्रकाशमें आना ही चाहिये । अत. इस कार्यको भी अगले सस्वरण तकके लिए स्थगित कर देना पड़ रहा है। जिन शब्दोंके टीप मैने ले लिये हैं, उन्हें हो देकर सन्तोप मानता हूँ। अन्तमें यह भी निस्सकोच कह देना चाहता हूँ कि हिन्दी साहित्य मेरा अपना विषय नहीं है। मध्यकालीन हिन्दी कवियों और उनके कार्योंसे मेरा परिचय नहीके बराबर है । साहित्य क्षेत्र में प्रवेश करनेका दुस्साहस सदैव मैंने अपने पुरातत्त्व और इतिहास प्रेम के माध्यमसे ही किया है। पुरातत्वकी शोध-बुद्धि ही मुझे चन्दायनके निवर वींच लायी है और यह माय आपके सम्मुस उपस्थित करनेसी धृष्टता कर रहा हूँ। यदि इसमें कही कोई कमी और त्रुटि जान पड़े तो उसे मेरी अस्पज्ञता समझकर पाठकवृन्द क्षमा करें। ___ इस दुर्बलता यावजूद, ग्रन्थो प्रस्तुत करते हुए मैं गौरवका अनुभव करता हूँ। हिन्दी साहित्यके इतिहासकी दृष्टिसे चन्दायनका अपना मूल्य और मद्दत्व है, उसमा प्रायमें आना हिन्दी साहित्यके इतिहासमें एक बहुत बड़ी घटनर है। परमेश्वरी लाल गुप्त निस आय वेल्स म्यूजियम, चम्बई। गणतन्त्र दिवस, १९६२