पृष्ठ:चंदायन.djvu/२९३

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२८४ देख | ५-चिते। ६-चाँद कादि के सरि पहुँचाई । "-आनसि आगि चाहि परजाई। ८-पाउ । ९-सूवहिं । १०– महि देहु । टिप्पणी-(३) नियर-निक्ट | भिनुसारा-सबेरा। (४) सरि-चिता । (५) गुनी-गुणी, गारुडी, विषवैद्य । डाक-डका (६) घालि-डालकर । पाग-पगडी । सहराइ-सीधे, लेटकर। ३५७ (रीरेण्ड्स २०० : मनेर १७०) शिरीनी (?) कबूल कर्दने लोरकका मर गुनी रा (लोरकका गुनीको मिठाई (१) देनेका पादा करना) हाथ क मुंदरी' सरग' कटारा । कान क कुण्डर चाँद गिय हारा ॥१ अउर जो साथ गाँठ है मोरे' । सो फुनि देउँ विखारी तोरे ॥२ कर उपकार कर जो पारसि । पिता मोर जो महि निस्तारसि ॥३ तोरें कहें चाँद जो लहउँ । दुहों जरम चेर होइ रहउँ ॥४ जो न होइ एतबार' हमारा । बचा बाँधि कर करहु पतियारा ॥५ फोने दार चल गेलउँ, के सतइस लेउ"।६ जो रे बसत" मैं बोली, चॉद जियइ तुम्ह" देउ ॥७ पाटान्तर-मनेर प्रति-- शीर्षक-जरीन कबूल कर्दने लोरक होमे अपसून गर रा (लोरकका मन्त्र पूँक्ने वालेको आभूषण देनेका वचन देना) १-मुंदरा । २-कमर । ३-कान कुण्ड चाँदा । ४-अउर साप है गाँठी मोएँ । ५-देही सब रिसारी तोरें। (कापका मरकज छूट जाने पिसारी बलहारी पदा जाता है)। ६-महि । - तोरे बचन चाँद डो पदहीं। ८-चेर तोर होहिही। ९-पतियार । १०–के करु । ११--बोरिन दरभ नल मेले, सतसद होह तो रेउँ । १२-~यताहि (1) टिप्पणी-(१) मुंदरि-अंगटो। (२) गाँठ-पास | मोरे-मेरे । पिसारी-(स० विधारि)-विरोध । (३) निनारसि-उद्धार परे। (७) इतधार--विस्वास । पचा-यचन । पतिपारा-विश्वास ।