पृष्ठ:चंदायन.djvu/२९७

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२८८ (१) जाइ महापसारक (पंजाब ) जाइ महापत [-----] चलावा । भाइ महापत असपत धावा ॥१ [---] लोरक [---] नॉ। जानु चलइ झाऊ के वनां ॥२ [....................--] 1 [-.............----] ॥३ भट लोग भये असवारा । काढ़े वेलक होइ चमकारा ॥४ कहँहि लोर तें जाहु परा[ई] 1 [-...--] के न नहि पड़ाई ॥५ [----] छाड़ जाहु --....-.] ६ ......... ॥७ लक होइ चमकदाई ॥५ पंजाय [ला] लोरक हरक खेद घिराई । पीर [-....... ---] ॥१ [-र गहें जिंह सेज पैसा [२] 1 पाउ बेरी [-...... -.-- ॥२ [-----------...---- -..............---]॥३ रमक पन नान क[-]विस मोही । सूर नर []हुत न देसी] तोही॥४ घर तर अछे [-----]नाँ मान । चित मन भाउ [-------] ॥५ [------ ---...-.]६ [..---- -........] 11७ . (पंजाय [प) [.............] राय महुवर लेरक रा [-..........] (1) राजा महता एक मन्तर कीन्हा । लोर पुलाइ पान लै दीन्हा ॥१ लोरक काज अम्हारा कीजइ । वयना मोर हरेवहि दीजह ॥२ अपना पाति आगें अस्थायसु ! परहितहिं पठया लोर घुलायमु ॥३ घोड़ा कापर तोरहिं दीन्हाँ । इहवहिं समुदित अंकी लीन्हा ।।४ तोहें लोर साहि गुहरावा | चाँद तिहँ लइ के धावा ॥५