पृष्ठ:चंदायन.djvu/३०४

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२९५ पावन केर नारि लै आयउँ । चाँदा तिरी महर धिय पायउँ ॥३ हो जो आह जै बाँठा मारा । एसों राउ रूपचंद हारा ॥४ हम पुनि हरदीपाटन चाली । राजा महुवर के [-*] कानी ॥५ चाँद सनेह जो निसरे, छाडि कुटुंब घर बार ॥६ तुम्हरे देस यह हूँटा जोगी, रहा होइ घटपार ॥७ टिप्पणी-(७) वटपार-बटमार, बटोहियोंको मार्गमें लूटने वाला। (मनेर १८०४) गुफ्तनि] जोगी कि ई जन मनस्त (जोगीका कहना कि यह मेरी स्त्री है) हूँटा कहै मोर वार वियाही । परी राद तोरै गवाही ॥१ सभा कह दुन्दु अब का कीजइ । इह र यह कह कस उत्तर दीजइ ॥२ दोउ कहहि यह पोरी जोई । इँह दुन्दु महँ हरसास न होई ॥३ यह हूँटा यह रावन अहई । धनि पूरहु दुन्दु यह का कहई ॥४ चाँदहि मन कुछ चेत न आया । अइस मन्त्र पढ़ि दें लाया ॥५ लोर कहा यह मोरी तिरिया, औ मुहि गोहन आइ १६ भर भिखार है हँटा जोगी, सकति चढ़इ लइ जाइ ॥७ ३८३-३८८ (अनुपलब्ध) ३८९ (रोलैण्ड्स २७४) रवान शुदने लोक व चाँदा व रसीदने नजदीरे हरदी (लोरक और चांद का घटकर हरदीके निकट पहुँचना) जाइ कोस दस ऊपर भये । यहुल भाँति वदेहुत दहे. ॥१ सभ निसि कहहिं पिरम कहानी | बाट गहत दिन रैन बिहानी ॥२