पृष्ठ:चंदायन.djvu/३०५

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२९६ पहर रात उठ चले कहारा । कोस चार पर भा भिनसाग ॥३ हरदी सीम तुलाने जाई । सगुन भये एक पाँडुक खाई ॥४ महर दाहनें थायें कर आवा । औ दाहिने मिरघ कै साय ॥५ महर कहा हुत दाहिनें पायें, सगुन होड पनार ६ तिह अरथ तुम्ह सिध पावहु, लोरक जाने सपसार ॥७ टिप्पणी-(४) हरी-इसे काव्यमें अनेक स्थलों पर हरदौपाटन कहा गया है । वड- दर ३९७ के शीर्षकमें उसे देवल 'पाटन' कहा गया है। पाटन (पट्टन <पत्तन) से ऐसा जान पडता है कि यह स्थान रिसी नदी अथवा समुद्र तटपर स्थित था। सर्वे आप इन्डियाको सूची अनुसार हरदी नामक स्थान मध्यप्रदेशमै ३३, महाराष्ट्र में ३, राज स्थानमें २, उत्तरप्रदेश ६, और विशाल २ है। इनमेले काम में वर्णित हरदी कौन है, रहना पटिन है। ३९० (रीरेण्ड्म २७५) सलाम पदने होरक राव रा दर शिकार व पुरसोदने राव शेतम रा (शिकारके निमिर जाते हुए राधको रक्का सटाम करना और राव झेतमका पूछना) मेतम राइ अहेर चढ़ा। हरदी किहहुत दइ जो कढ़ा ॥१ निकरत राउ जोहारसि सोई । राइ वृझि आये इँह कोई ॥२ अति गुनवन्त आह रुपयन्ता । सहसकराँ जइस सीमन्ता ॥३ कोऊ न चीन्हि सब कहहिं पटाऊ । पाउँ राउ पठवा नाऊ ॥४ जो तुम्ह चीन्हउदेसिलै आयमु । जो परदेसी उतार दिवायसु ॥५ हरदी पठे लोरक, सोर सोर फिर आउ ।६ जाँत नगरहिं चीन्हिन कोउ,सौ लोग पराउ ॥७ ३९१ (रोरेण्ट्म २०६) पुरस्टादने राव हवाम रा बरे लोक (रावा रोसके पास ना, भेजना) राउ इयहिं रावल इक आये । ऊँच मंदिर पतमार नुहाये ॥१