पृष्ठ:चंदायन.djvu/३१

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श्री अन्दुर्रज्जाक कुरेशीने काव्यवे पारसी शोपमा पाठ और उनके अनुवाद प्रस्तुत करनेमे मेरी पूरी सहायता तो की ही, साथ ही उर्दू पारसी अन्योंके आवश्यक सन्दर्भो को प्राप्त करनेमें भी योग दिया । सैयद हसन असकरी भी, अपनी प्रति देनेके अतिरिक्त, मेरे इस काममें निरन्तर रुचि लेते रहे और जब भी उन्हें मेरे कामकी कोई चीज नजर आयी, उन्होंने तत्काल उससे अवगत किया। उनकी इस पाये कारण मुझे बहुत-सी महत्वपूर्ण सामग्रीकी जानकारी हो सकी। इन सबका ऋण मेरे ऊपर कम नहीं है। इन सज्जनोंके अतिरिक्त सर्व श्री प्रजरत्न दास (काशी), किशोरी लाल गुप्त (आजमगढ़), शान्ति स्वरूप (आजमगढ़), गणेश चौवे (मोतिहारी), नर्मदेश्वर चतुर्वेदी (प्रयाग), निलोवी नाय दीक्षित (लखनऊ), क्यूमुद्दीन अहमद (पटना), वेद प्रकाश गर्ग (सहारनपुर), प्रभाकर शेटे (बम्बई), शिवसहाय पाठक (बम्बई), जगदीश चन्द्र जैन (बम्बई), हरिवल्लभ भयाणी (बम्बई), नरेन्द्र शर्मा (बम्बई), ब्रजकिशोर (दरभगा), जगन मेहता (बम्बई) आदि महानुभावोंने इस प्र-थकी सागरी जुटानेमें तरह तरहकी सहायता दी है। इन सबके प्रति भी मैं अपनी मृतज्ञता प्रकट करता हूँ। पुस्तक की पाण्डुलिपि तैयार हो जाने पर भाई श्रीकृष्णदत्त भह ने उसे आद्योपान्त देसने की कृपा की और महत्वपूर्ण मुशाव दिये। इसके लिए मैं उनका अत्यन्त आभारी हूँ। प्रकाशक्ये रूपमें श्री यशोधर जी मोदीने इसके प्रकाशित करनेमें जो रचि प्रकट की और उसमे शीघ्रातिशीम प्रराशित करनेकी जो ब्यवस्थाको, उसे मैं भूल नही सकता। उसी तत्परतासे शानमण्डल मुद्रणालय व्यवस्थापक श्री ओमप्रकाश कपूर ने भी इसके मुद्रणमें योग दिया । इन दोनोंये प्रति कृतज्ञता प्रक्ट परते हुए प्रसनताका अनुभव करता है। परमेश्वरी लाल गुप्त