पृष्ठ:चंदायन.djvu/३१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

खोल पिटारा कापर देसे । अभरन अछरन आह बिसेसे ॥४ घेर लोग भरा घर थारू । जस चाहत तस दीन्ह करतारू ॥५ चॉद सुरुज मन रहँसे तिल तिल करहिं बडाउ ६ एक समो गोबर हुँत आये, हरदीपाटन रहाउ॥७ पाठान्तर-बम्बई प्रति-- दशीपक-सखावत कदने लगेरक पराय पुक्रा दर शहर (नगरम लोरक का फकीरों (१) को दान देना)। इस प्रतिमे पति ३ वे पद पीछे-आगे हैं। १- एक सौ । २-लौरहिं । ३-जिह। ४-सभै। ५-लोग। ६.-पुनि । ७-कीन्हि । ८-चेरी चेर । ९--जाउ। टिप्पणी--(१) टोका-टा, चाँदीका एक सिक्का ओ दिल्ली सुल्तानोंके समयमै प्रचलित था । पीर (पारसी-पीर)-प्राह्मण ! पालि-निछावर करके ! नाउ-नाई, हग्जाम ।। (२) बाना-पहनावा । (३) यस्तर-वस्त्र । (७) समो-समय। ३९८ (बम्बई १८) ययान कर्दन दुश्वारिये मैंना (मैनाके दुखका वर्णन) निसि दुख मैनहि रोइ विहाई । सम दिन रहै नैन पॅथ लाई ॥१ मकु लोरक इह मारग आवइ ।कै फेरि*]आके आपु जनावइ ॥२ निसि दिन सुरघड आस बेआसी । रोइ रोइ सिनसिन होइ निरासी ॥३ लोर लोर कह दिन पुरावइ | अउर पचनहर मुहि न आपइ ।।४ तपते अजही रैन बिहाई । जस मछरी दिनु नीर मुरझाई ॥५ पिरह सवाई मेना, अहि परि दिन औ रात 1६ सम लीन्हें दुस लोर केरा, विरहा कीन्हि सँघात।।७ टिपणी-(२) मकु-कदाचित दायद । के हरि*] आके-यह अनुमानित किन्तु सगत पाठ है। मूल्में कार, ये, पे, हे, ये, अल्पि, गा ए,