पृष्ठ:चंदायन.djvu/३११

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३०२ इस प्रकार तीन शन्द या शन्द खण्ड हैं, जो प्या पदा सकते है। उन्हें 'वैप हिया दे भी पढ सक्ते हैं। पहल पाठ अर्थ हीन है। दूसरे पाठका अर्थ होगा-'हृदयी बथा। इस अर्थ साथ पाठ ग्रहण किया जा सकता है। जो भी हो, पाठ सन्दिग्ध है। (३) सुरवइ-(स० स्मृ धानुका प्रा० धात्वादेश झुरई) याद करती है, चिन्तन करती है, सोचती है। भास भासी-विना आशाके आशा । निरासी-निराशा । (५) पुरावइ-व्यतीत करती है । पचनहरदशन्द । (रोरेण्ड्स २८३ : बम्बई ४८) पुरसीदने खोलिन सिरजन रा पुरसीदने अखबारे लोक (सोलिनका सिरजनसे रोररुकी खबर पटना) दीदी मुनउ सुनी एक वाता । आवा टाँड कहा दोसै साता ॥१ फेर्दै आइ सँकट' के मेला । पूछहु आन कवन भुंइ खेला ॥२ खोलिन नायक घरहिं बुलावा । पूछसि टाँड कहाँ हुत आवा ॥४ कउन पनिज लादेउँ पर परधाना । कउन रात तुम्ह देत पयाना ॥४ कउन लोग घर कहाँ तुम्हारा । कउन नाँउ किंह कुटुंब हँकारां ॥५ आसा लुबुधैं पूछउँ, जो परदेसी आई।६ मोर वार परदेस विरोधा, मुखहिं जाहि को पाइ"॥७ पाटान्तर-यम्बई प्रति- शीकमुनीदने मैंना व खोलिन किसी बाजरगान अज तरपे हरदा आमद (मैना और खोलिनका मुनना कि हरदीवी ओरसे कोई वणिक आया है)। १-कोदे संकट आइ । २-पृछेउ टयेंट क्वन मुपर्ने सेला ।- मन्दिर । वहयों । ५-रायो । ६-देस। ४-देत । ८- हमारा ] :-आमा बुधै ही दुन, पृछउ जो परदेसी भाउ | १०-पाउ। टिप्पणी-(१) दादी-नान का अपनी सासको 'दीदी' सम्बोधित किया है, जो असाधारण है । कडक ४६ में मनावी ननदने अपनी मार लिए इस