पृष्ठ:चंदायन.djvu/३१३

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नाँह मोर हो चारि वियाही । लै गई चाँदा पाटन ताही ॥३ लोरक नाउ सुरुज के करा । सेउ ले चाँद पाटन धरा ॥४ महिं तज सुरुज चाँद ले भागा । दूसर समो आइ अब लागा ॥५ सब दिन नैन जोवत पन्यं, औ निर्सि जागत बाइ १६ मोर सँदेस लोर कहुँ, इहँ पर रोइ यहाई ॥७ पाठान्तरकाशी प्रति- शीर्षक दर पाये सिरजन उफ्तादन मना व अहवाल गुन्टन (सिरजनके पैरों पर गिरकर मैना का अपना हाल कहना) १-खेलिन । २-रक्त । ३-बूटी। ४-दौरि । ५-चाँदा । ६- नैन वहि । ७-औ सर निसि । ८-अन्तिम पद प्रतिम मिट गया है। टिप्पणी-(१) क-कहीं।। (३) नाह-पति । पारिबाला, युवती । (७) करा--कत्ता । से-उसै । (५) समो-समय। (६) बोषत-निहारते हुए। ४०२ (रीलंण्ड्स २८५) परिपते माह सावन गुप्तने मैंना मर सिरन आँच दुपारी ब्द (मैनाका मिरजनसे मानी साधन मासकी भवस्या काना) साँपन मास नैन झर लाये । अखरन नाह दिन एका पाये ॥१ परसि भरे भई सार संदोला । भि न सूकै चार अमोला पार चस काजर चस रहे न पावा । खिन सिन मैंना रोइ यहावा ॥३ सावन चाँद लोर ले भागी । मैना नैन पूर सर लागी १४ इह पर नैन चुहिं अरवानी । सरि ग हार टोर तिहँ पानी ॥५ जिंह सावन तुम्ह गवर्ने, सो मंना पर लाग६ सिरजन कहाँ सोरकह, पाँजर के अभाग १७