पृष्ठ:चंदायन.djvu/३१४

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४०३ (रीलैण्ड्स २८७ : बम्बई ४९) __ पियने माह भादों (भादो मासकी अवस्था) भादों मास निसि भइ अँधियारी । रेन डरावन ही धनि पारी ॥१ विजलि चमक मोर हियरा' भागें । मंदिर नाह बिनुडहि डहि लागै ॥२ संग न साथी न ससी सहेली' देखि फाटि हिय मंदिर अकेली ॥३ तिहि दुख नैन फूटि निसि चहै। धरती पूरि सायर भर रहे ॥४ निकर चल पा चली न जाई । भुई वृद्धि रहा जल छाई ।।५ दुरजन पचन स्ववन के, लोर विदेसहि' छायउ ।६ नीर लाइ नैन दुइ वरखा", सिरजन रोइ बहायउ ॥७ पाठान्तर-बम्बह प्रति- शीर्षक-गस्ती माह भादों गुफ्तन मैंना पीठो सिरजन पैगाम बजानिने, लेरक (सिरजन के आगे मैनाका अपनी भादो भामको दुरवस्था पहना और लोरके लिए संदेश भेजना) १--भादो बरस चमक । २-चचल । ३--होंउर। ४-साथि । ५- सहेली । ६-अपी । -एहि दुप पूटि भैन तम । ८-पग ! ९-भुमहि । १०-सवन । ११-परदेसहि । १२-लाइ नैन दु: बरखा । ४०४ (रीलैण्ड्स २८८४) बैंपियते माह कुआर (कुआरकी भवस्था) चढ़ा कुआर अगस्त चितावा | नीर घटे पै कफन्त न आवा ||१ फले कांस हॉस सिर छाये । सारस कुलहिं सिडरिज आये ॥२ चिरवा पार न अपुरुष पारी । अति रम भई नाँह पियारी ॥३ नव रितु लाग पितरपख होई । राई रॉक घर सीझ रसोई ॥४ २०