पृष्ठ:चंदायन.djvu/३१७

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३०८ सिरजन लोर पनिज गा, हौं नित हारउँ आँस ।६ कौन लाभ किंह भूले, लोरक पूँजी होइ पिनास ॥७ ४०८ (रीरेण्ट्स २९०९) कैफियते माह मास (माघ मासकी भयस्या) माह मॉस निसि परै तुसारू । कँपहि हार डोर थनहारू ॥१ काँपहि दसन नीर चख झरा | विरह अँगीठी हीउर धरा ॥२ "एक विरहे अरु दुहेउँ तुसारा । भार विरह यह जीउँ हमारा ॥३ तुम पिनु पात अइस हौं भयो । पुरई जइस पूँज दहि गयी ॥४ भर हीउ बहुर अंग लाऊँ । लेगइ चाँद सुरुज कित पाऊँ ॥५ हेंबत मोहि निसारे, जिहि पर कामिनि रावइ ।६ सिरजन मुयउँ तुसार, वेग कहु सूरुज आवइ ॥७ टिप्पणी-(१) माह-माघ । ४०९ (रीरेण्ड्स २९०१) पोपयते माह पागुन (पागुन मासकी अवस्था) फागुन सीउ चौगुन कहा । अछर पचन सकति होड़ रहा ॥१ भाग मराहउँ लोर जो आवइ । सीउ मरत गिय लाइ जियावइ ॥२ घर घर रचहिं दन्दाहर पारी । अति मुहाग यह राजदुलारी ॥३ मुख तँपोल चस काजर प्रहिं । अंग माँग सिर चीर सिंदूरहिं ॥४ नाचहि फागु होइ झनकारा | तिह रस भई नई सयँसारा ॥५ रकत रोइ मैं अस के, चोलि चीर रतनार 1६ कहु मिरजन तोर मैना, भह होरी जरि हार ॥७ टिप्पणी-(७) पारराय !