पृष्ठ:चंदायन.djvu/३१८

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-- १ ४१० (अनुपलब्ध) ४११ (रामपुर) F- - - - - - - - - - - [- - - - - -... -] [- - - [- - - - - - ...-] 1[- - - - - - ...॥३ कोइल जइस फिर सब रूखा । पिउ पिउ करत जीम मोर सूखा ॥४ नसँड चिरिख रहा नहिं कोई 1 कवन डार जिंह लागि न रोई ॥५ एक बाट गह हरदी, दसर गई महोत्र ६ . ऊभ चाँह के चाँदा नवइ, कवन बाट हम होय ॥७ टिप्पणी-यह अश पदमावतकी प्रतिके आवरण पर उद्धरण रूप में अकित है। इस कारण शीर्षक और प्रथम तीन पक्तियाँ अप्राप्य है। ४१२ (पम्पई ३८) हमे हाले खुद गुफ्तने मैंना पीश सिरजन पैगाम बेजानिये लोरक (मैनाका सिरजनसे अपना हाल कहना और लोरकके पास सन्देश भेजना) मैं सभ दुख तुम्ह आर्गे रोपा । चाँद नाँह मुरि देहु बिछोवा ॥१ तूं हर पूनेउँ चाँद सपूनी । सटरितु कीनी सेज मोर सनी ॥२ कहु सिरजन अस चाँद न कीजइ । नाँह मोर मुहि दुख ना दीजडू ॥३ एक परिस मुहि गा बिनु नाहाँ । दइ के डर कीजइ चित्त माँहाँ ॥४ तिहूँ आहि तिरिया के जाती । पिउ विनु मरसी रैन हिय फाटी ॥५ हूँ मिसापी मारि, सोफमा 'मॅहि पिगम. IR (लीन्हें) मुरसि नाँह मोर, कस अवहूँ न आँस ॥७ मूलपाठ- गहें (ननका नुख्ता घट जानेसे ही यह पाठ है)। टिप्पणी-(४) गा-पीत गया । (७) भुरसि-मोह।