४१३ (बम्बई ३९) वाक्ये हाले खुद गुफ्तने मैंना पीस सिरज्न पैगाम वेजानिबे लेरक (मैनाका सिरननसे हाल कहना और लोरक के पास सन्देश भेजना) काहे कॅह विधि हौं औतारी । बरु औतरतहिं मरतिउँ पारी ॥१ चाँद मया कर दइ अहियातू । मेहि पारी सर ऊपर छातू ॥२ यह दुस भार सहै को पारी । तिहि निसि रोड देवस महॅ जारी ॥३ सोरहकराँ सरग परगाससि । बारह मंदिर सेज तूं डाससि ॥४ सहसकराँ सुरुज उजियारा । साई मोर तिहि भयउ पियारा ॥५ पायें पर जो गानसु, औ सिरजन पूजा सारउँ १६ चारकरॉ जो परगासे, तासों कैसें पारउँ ॥७ टिप्पणी-(१) भौतारी-अवतार दिया, जन्म दिया । मरतिउ-मार डालते । बारी-पन्या। (२) महिवात्-पति के जीवित होनेका सौभाग्य । (३) गवनसु-जाओ। (बम्बई ५२) व वितायत गुफ्तने मैंना हाले खुद पीस सिरजन पैगाम वेजानिये चाँदा (घाँद के पास मन्दंश रेजानेके लिये मैनाका सिरजनसे अपना हाल कहना) मोर भतार सरग ले राबसि । औ निसि महि सर ऊपर आवसि ॥? पाँमन देउ लोग महिं दीन्हा । सो 6 लोर पल के लीन्हा ॥२ । रिनु लाज कानि तिहिं नाहीं । नाँह मोर गोवमि परछाहीं ॥३ मुहि राससि अपनें उजियारी । लोर रूसि पर घर अँधियारी ॥४ पावन पुरुम जो तोर पियाहा । लोरक मोर गहमि दुहुँ काहाँ ॥५ सिरजन विनवउँ चाँद कटु, पठहि लोर दिवाड १६ छाँडि देहि घर आचड़, महि जिय आस तुलाइ ॥७