पृष्ठ:चंदायन.djvu/३२०

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टिप्पणी-(१) राबसिरमण करती है। (२) बैल के लोन्हा बैल बना लिया, (मुहावरा) वशीभूत कर लिया । (पम्बई ५३) पाये उफ्तादने मैंना अज बराये रसीदने पैगाम ये जानिबे लोरक (लोरक्के पास सन्देश ले जाने के निमित्त मैना का पाँव पड़ना) सिरजन पाउर हेलै मैना ! बनिज तुम्हार मोर दुख वैनॉ ॥१ लादि टाँड तिहि चलहु गुंसाई । जिह पाटन गा लोरक साई ॥२ जिंह पाटन गइ चॉद सुभागी । सिंह पाटन गरनहु महि लागी ॥३ जिह पाटन पिउ रहा लुभाई । लोभी चाँद न लै घर आई ॥४ सिंह पाटन लै पनिज विसारा । औ बेसह कह लोर हॅकारा ॥५ देउँ तुरी चढि सिरजन, उदरै पवन पँस लाइ ।६ दस गुन लाभ देव मै तोकहॅ, लोर साहै जाइ ॥७ टिप्पणी-(१) बाउर-पागल । ईले-ठेल्ती है, ढकेलती है, भेजती है । निज--- व्यापार सामग्री । (२) पाटन -पत्तन, बन्दरगाह, यहाँ तात्पर्य हरदीपाटनसे है। किन्तु 'राटन' पाठ भी सम्भव है। उस अवस्था में अर्थ होगा-मार्ग। (३) गवनहु-गमन क्रो, जाओ। महि लागी-मरे निमित्त, मेरे निहोरे । (५) बिमार-विश्य यस्तु । वेसह-प्रायवे निमित्त । (७) देव-दूंगी । तोकहूँ-नुमको । ४१६ (रीरेण्ड्स २९६ : बम्बई ४०) गुफ्तने सोलिन सिरजन नायक रा प रवान कर्दन ( खोलिनका सिरजन नायकसे रहना और उसे भंजना) खोलिन' नायक दुन्हु कर गहा । आपुन पीर हिये के कहा ॥१ लसत हाथ अँधरी के लई । हो न लखत टेक मोर गयी ॥२ पियर धूप अ जीवन मोरा । यह पछताउ रहसि तुम्ह लोरा ॥३