पृष्ठ:चंदायन.djvu/३२१

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३१२ बूढ भयसि खोलिन सँभलानी । तुम विनु पूत सीचि को पानी ॥४ आइ देखु हो अथवत आहा । अथयें आइ करियहु काहाँ ॥५ मोर जियतहिं जो सिरजन, लोरक आइ दिखाउ ।६ नैन नीर सायर अति यहई", [धोई] पीउ" दोड़ पाउ ॥७ पाटान्तर-यमई प्रति- शीर्षक-गुफ्तन सेलिन वाक्या हाल खुद जईपी पैगाम यजानिब लोरक (सहिनका अपने बुढापेकी अवस्था कहकर लोरसके पास सन्देश भेजना) इस प्रति मे पक्ति ३, ४ और ५ प्रमशः ४, ५ और ३ है। १-रोलिन। २-ल्सत हुती अंधरी कै गयी। ३-~-मुर लई १४- यह। ५रहिह । ६-बूढ वयसि लिन कुंबानी। ७-तिह । ८-अथये आइ करि पुनि काहा। ९-मोहि जियत जिय । १०--- नैन नीर भर सरवर । ११-पियाँ। ४१७ (रीलैण्ड्स १९७ : यम्बई ४१) रवान मुदने सिरजन सूये हरदोपाटन (सिरजना हरदीपाटनकी ओर रवाना होना ) कवन बनिज तुम्ह नायक कीन्हा । सोक संताप विरह दुख लीन्हा॥१ दंड उदेग उचाट विसाहा । अब चैराग्य सपार जो आहा ॥२ अरथ दरब सम यासर भरा । वाखर कौन विरह दुर जरा ॥३ अहर दानार सब दौं लागा । झार न सह साथि सत्र भागा ॥४ मारग घर बैं" जरते" जाई । मैंना काम न आग" बुझाई ॥५ दानी मॉगत दान महारत, औ बैठे वटवार १६ कहत मुनत दी दाधे, सिरजन कह उपकार" ॥७ पाटान्तर-सम्बई प्रति- शीर-पैगाम पिराक हासिल शुदने सिरजन रा प रयाँ कर्दन अज गोवर जानिये लेख (विरहवा सन्देश पर मिरजनका गोवरसे रोरवये पास जाना) १--मुनु । २-लीन्हा । ३-दोन्हा । ४-अति अशरा उठ । ५- सभार । ६-अरनी मरन धनि राब भरा। ७-~पर। -सहे।